SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८ वेदनीय का, साई अधुवो - सादि, अध्रुव, बंधोव्य---बंध की तरह, होइ - होता है, तह — तथा, अधुवसंतीणं - अध्रुवसत्ता वाली प्रकृतियों का । १७ गाथार्थ - ध्रुवसत्ता वाली प्रकृतियों का संक्रम सादि आदि चार प्रकार है, मिथ्यात्व, नीचगोत्र और वेदनीय का संक्रम तथा अध्रुवसत्ता वाली प्रकृतियों का बंध की तरह सादि और सांत, इस तरह दो प्रकार का है । विशेषार्थ --- सत्ता की दृष्टि से प्रकृतियां दो प्रकार की हैं- ध्रुवसत्ताका और अध्रुवसत्ताका । इन दोनों प्रकारों की प्रकृतियों की सादि-अनादि प्ररूपणा इस प्रकार है सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, नरकद्विक, मनुष्यद्विक, देवद्विक, वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, तीर्थंकरनाम, उच्चगोत्र तथा आयुचतुष्क, कुल मिलाकर अट्ठाईस प्रकृतियां अध्रुवसत्ता वाली हैं और शेष एक सौ तीस प्रकृतियों की ध्रुवसत्ता है । अब इनके सादि आदि भंगों का विचार करते हैं - मिथ्यात्वमोहनीय, नीचगोत्र, साता - असाता वेदनीय के सिवाय शेष एक सौ छब्बीस ध्रुवसत्कर्म वाली प्रकृतियों का संक्रम साद्यादि रूप चार प्रकार का है । वह इस प्रकार - उपर्युक्त ध्रुवसत्कर्म प्रकृतियों कासंक्रम की विषयभूत प्रकृतियों का - पतग्रहप्रकृति का बंधविच्छेद होने के बाद संक्रम नहीं होता है । तत्पश्चात् संक्रम की विषयभूत प्रकृतियों का अपने-अपने बंधहेतु मिलने पर पुनः बंध होता है तब पंक्रम होता है, इसलिये सादि, बंधविच्छेदस्थान जिन्होंने प्राप्त नहीं किया है, उनको अनादिकाल से संक्रम होता है, इसलिये अनादि, अभव्य के किसी भी काल बंधविच्छेद नहीं, इसलिये अनन्त (ध्रुव) और भव्य के कालान्तर में बंधविच्छेद संभव होने से सांत (अध्रुव) संक्रम होता है । मिथ्यात्वमोहनीय, नीचगोत्र, साता - असाता वेदनीय का संक्रम सादि और सांत (अव) इस प्रकार दो तरह का है । वह इस तरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy