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________________ 8 प्रकृति नाम अनन्ता. चतुष्क सम्यक्त्वमोहनीय दीर्घकाल उप सम्यक्त्व पालन कर मिथ्या के प्रथम समय सातवीं पृ. का नारक संज्वलन क्रोध, मान, माया संज्वलन लोभ मध्यम कषायाष्टक स्व चरम प्रक्षेप के समय नौवें गुणस्थान में क्षपक हास्य, रति, भय, जुगुप्सा अरति, शोक उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम स्वामित्व जघन्य प्रदेश संक्रम स्वामित्व पुरुषवेद Jain Education International पंचसंग्रह भाग ७ : परिशिष्ट १४ अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर स्व चरम प्रक्षेप समय सातवीं नारक 33 स्व संक्रम के अन्त में क्षपक नौवें गुणस्थान वाला 33 " स्व चरम प्रक्षेप के समय क्षपक नवम गुणस्थानवर्ती १३२ सागरो. सम्यक्त्व का पालन कर द्विचरम स्थितिखंड के चरम समय मिथ्या. अल्पकाल बांध. १३२ सागर सम्यक्त्व का पालन कर स्व क्ष क यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय में दीर्घ क्षपक अप्रमत्त यथाप्रवृत्तकरण चरम समय में जघन्य योग से स्वबंध विच्छेद समय बंधे हुए के चरम संक्रम के समय क्षपक नौवां गुणस्थानवर्ती अनुपशांत मोह क्षपक अपूर्वकरण प्रथम आवलिका के चरम समय क्षपक अपूर्वकरण स्वबंध विच्छेद के समय क्षपक अप्रमत्त गुणस्थान में यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय संज्वलन क्रोधवत् क्षपक नवम गुणस्थानवर्ती For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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