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प्रकृति नाम
रति, अरति,
हास्य, शोक, भय, जुगुप्सा
पुरुषवेद
स्त्रीवेद नपुंसक वेद
देवायु
मनुष्यायुतिर्यंचा
नरकायु
देवद्विक
मनुष्यद्वक
तिर्यंचद्विक
नरकद्विक
एकेन्द्रियादि जाति चतुष्क
पंचेन्द्रिय जाति, वसचतुष्क, पराघात, उच्छ्वास
औदारिक सप्तक
उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम प्रमाण
चतुःस्थान और सर्वघाति
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द्विस्थान और सर्वघाति
चतुःस्थान और सर्वघाति
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जघन्य अनुभाग
संक्रम प्रमाण
विस्थान और सर्वघाति
एकस्थान और देशघाति
द्विस्थान और सर्वघाति
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उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम स्वामित्व
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युगलिक और आनतादिक । अपने चरम प्रक्षेप के समय
देवों के बिना चारों गति के मिथ्यादृष्टि
क्षपक नौवें
गुण. वाले
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मनुष्य, अनुत्तरवासी देव
मनुष्य और तियंच
देव बिना तीन गति के जीव
क्षपक स्वबंध विच्छेद से सयोगि केवली तक के जीव
सम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टि चारों गति के जीव
युगलिक और आनतादि देव वर्जित चारों गति के मिथ्यादृष्टि
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क्षपक स्वबंध विच्छेद से योगिकेवली तक के
जीव
सम्यक मिथ्यादृष्टि चारों गति के जीव
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जघन्य अनुभाग संक्रम स्वामित्व
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در
परिशिष्ट : १३
स्व जघन्य बद्धायु नरक बिना तीन गति के जीव
स्व जघन्य बद्धायु मनुष्य तियंच
स्व जघन्य बद्धा देव बिना तीन गति के जीव
असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जघन्य अनुभाग बांधकर आवलिका के
बाद
सूक्ष्म लब्धि अप. निगोद जघन्य अनुभाग बांधकर आवलिका के
बाद
हृत प्रभूत अनुभाग सत्ता वाले सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि
संज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त अनुभाग बंधकर आवलिका के बाद
हत प्रभूत अनुभाग सत्ता लि सूक्ष्म एकेदि
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