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परिशिष्ट : ८ ] प्रकृतिसंक्रम की अपेक्षा १५४ प्रकृतियों के संक्रम को साद्यादि प्ररूपणा [ पंचसंग्रह भाग : ७ | ३१४
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संक्रम्य प्रकृतियाँ
सादि
अध्रुव
अनादि
ध्रुव
बंधविच्छेद स्थान को अभव्यापेक्षा प्राप्त नहीं करने वालों की अपेक्षा
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१२६ ध्र वसत्ताका | पतद्ग्रह रूप प्रकृति भव्यापेक्षा
के बंधविच्छेद के अनन्तर पुनः बंध होने
पर २४ अध्र वसत्ताका
अध्र व सत्ता वाली अध्र वसत्ता वाली होने से
होने से वेदनीयद्विक, नीच परावर्तमान प्रकृति
परावर्तमान प्रकृति गोत्र होने से
होने से मिथ्यात्व
विशद्ध सम्यग्दृष्टि के सादि होने से संक्रम्यमाण होने से
और सम्यग्दृष्टित्व कादाचित्क होने से
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नोट-आयुचतुष्क का परस्पर संक्रम नहीं होने से, उनमें साद्यादि भंग नहीं होते हैं। इसलिये शेप १५४ प्रकृतियों
में साद्यादि भंग संभव हैं।