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पंचसंग्रह : ७
उद्वर्तना और अपवर्तना करण की मूल गाथाएँ उदयावलिवज्झाणं ठिईण उवट्टणा उ ठितिविसया। सोक्कोसअबाहाओ जावावलि होई अइत्थवणा ॥१॥ इच्छियठितिठाणाओ आवलिगं लंघिउण तद्दलियं । सव्वेसु वि निक्खिप्पइ ठितिठाणेसु उवरिमेसु ॥२॥ आवलिअसंखभागाइ जाव कम्मट्ठितित्ति निक्खेवो। समोयत्तरावलीए साबाहाए भवे ऊणो ॥३॥ अब्बाहोवरिठाणगदलं पडुच्चेह परमनिक्खेवो । चरिमुव्वट्टणगाणं पडुच्च इह जायइ जहण्णो ॥४॥ उक्कोसगठितिबंधे बंधावलिया अबाहमेत्तं च । निक्खेवं च जहण्णं मोत्तु उव्वट्टए सेसं ॥५॥ निव्वाघाए एवं वाघाओ संतकम्महिगबंधो। आवलिअसंखभागो जावावलि तत्थ इत्थवणा ॥६॥ आवलिदोसंखंसा जइ वड्ढइ अहिणवो उठिइबंधो। उव्वटित तो चरिमा एवं जावलि अइत्थवणा ॥७॥ अइत्थावणालियाए पुण्णाए वड्ढइत्ति निक्खेवो । ठितिउव्वट्टणमेवं एत्तो आव्वट्टणं वोच्छं ।।८।।
ओव्वट्टन्तो य ठिति उदयावलिबाहिरा ठिईठाणा । निक्खिवइ से तिभागे समयहिगे लंघिउं सेसं ॥६।। उदयावलि उवरित्था एमेवोवट्टए ठिइट्ठाणा। जावावलियतिभागो समयाहिगो सेसठितिणं तु ॥१०॥ इच्छोवट्टणठिइठाणगाउ उल्लंघिऊण आवलियं । निक्खिवइ तद्दलियं अह ठितिठाणेसु सव्वेसु ॥११।। उदयावलिउवरित्थं ठाणं अहिकिच्च होइअइहीणो। निक्खेवो सव्वोवरिठिइठाणवसा भवे परमो ॥१२।।
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