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________________ संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३ २५५ विशेषार्थ - निक्षेप की विषयरूप स्थिति दो प्रकार की है१. जघन्य, और २. उत्कृष्ट । निक्षेप की विषयरूप स्थितियां वे कहलाती हैं कि जिनमें जिस स्थिति की उद्वर्तना होती है, उसके दलिक निक्षिप्त किये जाते हैं । उसका जघन्य उत्कृष्ट कितना प्रमाण होता है, अब इसको स्पष्ट करते हैं आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितियों में कर्मदलिक का जो निक्षेप होता है, वह जघन्य निक्षेप है । अर्थात् जब सत्तागत स्थिति जितनी स्थिति का बंध हो तब सत्तागत स्थिति में की चरमस्थिति की उद्वर्तना नहीं होती है । क्योंकि जितनी स्थिति की सत्ता है, उतना ही बंध होता है, जिससे सत्तागत स्थिति में के चरम स्थितिस्थान के दलिक को प्रक्षिप्त करने योग्य कोई स्थान नहीं है । द्विचरम स्थिति की भी उद्वर्तना नहीं होती है यावत् चरम स्थितिस्थान से लेकर एक आवलिका और आवलिका के असंख्यातवें भाग की उद्वर्तना नहीं होती है । इसी प्रकार सत्तागत स्थिति के समान स्थिति का जब बंध हो तब उस सर्वोत्कृष्ट स्थिति के अग्रभाग से यानि अंतिम स्थितिस्थान से लेकर एक आवलिका के एवं आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिस्थानों की उद्वर्तना नहीं होती है, उसके नीचे के स्थान की ही उद्वर्तना होती है और उसके दलिक को उसके ऊपर के समय से लेकर आवलिका अतीत्थापनावलिका मात्र स्थिति को उलांघकर ऊपर के आवलिका के असंख्यातवें भागप्रमाण स्थिति में निक्षिप्त किया जाता है, किन्तु अतीत्थापना रूप आवलिका में नहीं किया जाता है । इस आवलिका में प्रक्षेप नहीं करने का कारण तथाप्रकार का जीवस्वभाव है | इस प्रकार चरम स्थितिस्थान से आवलिका और आवलिका का असंख्यातवां भाग उलांघकर उससे नीचे के स्थान की उद्वर्तना हो तब अंतिम आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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