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रूपणा एवं स्वामित्व विचारणा के प्रसंग में गुणित कांश और क्षपित कर्माश
वों की विशद् व्याख्या की है। जो क्रमशः उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशसंक्रम के धिकारी हैं।
इस प्रकार से प्रदेशसंक्रम के अधिकृत विषयों का विवेचन करने के साथ क्रमकरण का वर्णन समाप्त हुआ। संक्रमकरण के अधिकृत विषयों का वर्णन १६ गाथाओं में किया है ।
इसके पश्चात् एक प्रकार से संक्रम के भेद जैसे उद्वर्तना और अपवर्तना न दो करणों का वर्णन किया है। संक्रम और इन दो करणों में यह अन्तर
कि संक्रम तो प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश चारों का होता है, किन्तु इवर्तना और अपवर्तनाकरण स्थिति और अनुभाग के विषय में होते हैं । इन द्वर्तना और अपवर्तना के स्थिति और अनुभाग के भेद से दो मुख्य प्रकार
और इन दो प्रकारों में से प्रत्येक के निर्व्याघात, व्याघात के भेद से दो'प्रकार हो जाते हैं ।
संक्षेप में यह संक्रम आदि तीन करणों के विचारणीय विषयों की रूपा है। यह तो संकेत मात्र है। विस्तृत और विशद् जानकारी के लिये ठकगण पूरे अधिकार का अध्ययन करें, यही अपेक्षा है।
-देवकुमार जैन
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