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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८१
१८७ विध्यात आदि संक्रमों के अपहारकाल का अल्पबहत्व
गुणमाणेणं दलिअं हीरतं थोवएण निट्ठाइ।
कालोऽसंखगुणेणं अहविज्झ उव्वलणगाणं ॥१॥ शब्दार्थ-गुणमाणेणं-गुणसंक्रम के प्रमाण से, दलिअं—दलिक, हीर तं--अपहरण किया जाता, थोवएण-अल्पकाल में, निट्ठाइ-निर्लेप होता है, कालोऽसंखगुणेणं-असंख्यातगुण काल, अहविज्झ उव्वलणगाणंयथा प्रवृत्त, विध्यात और उद्वलना संक्रमों द्वारा।
गाथार्थ-गुणसंक्रम के प्रमाण द्वारा अपहरण किया जाता चरमखंड का दलिक अल्पकाल में निर्लेप होता है और यथाप्रवृत्त, विध्यात और उद्वलना संक्रमों द्वारा उसी खंड के दलिक का अपहरण किये जाने में अनुक्रम से असंख्यातगुण असंख्यातगुण काल होता है। विशेषार्थ-उद्वलनासंक्रम के स्वरूपकथन के प्रसंग में जो चरम खंड का निर्देश किया था, उस चरमखंड के दलिक को गुणसंक्रम के प्रमाण से अपहार किया जाये—पर में निक्षेप किया जाये तो वह चरमखंड अल्पकाल में ही-अन्तर्मुहुर्तकाल में पूर्ण रूप से निर्लेप होता है तथा उसी चरमखंड के दलिक को यथाप्रवृत्त, विध्यात और उद्वलना संक्रम के प्रमाण से यानि कि उस-उस संक्रम के द्वारा जितना-जितना अपहृत किया जा सके-पर में संक्रमित किया जा सके, उस प्रमाण से यदि अपहरण किया जाये तो अनुक्रम से असंख्यातअसंख्यातगुण काल में अपहरण किया जा सकता है। इसीलिये उनका अपहरण काल अनुक्रम से असंख्यात-असंख्यातगुण जानना चाहिये।
असंख्यातगुण काल कहने का कारण यह है कि यदि उस चरमखंड को यथाप्रवृत्तसंक्रम के द्वारा अपहार किया जाये तो वह खंड पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने काल में निर्लेप होता है। इसीलिये गुणसंक्रम द्वारा होने वाले अपहारकाल से यथाप्रवृत्तसंक्रम द्वारा होने वाला अपहारकाल असंस्वातगुण होता है।
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