SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसंग्रह : ७ अतएव प्रथम विध्यातसंक्रम का स्वरूप और वह किन प्रकृतियों का होता है, इसको बतलाते हैं विध्यात-विशिष्ट सम्यक्त्व आदि गुण अथवा देवादि भव के आश्रय से जिन कर्मप्रकृतियों का बंध शांत हुआ है-नष्ट हुआ है, बंध नहीं होता है, वैसी प्रकृतियों का जो संक्रम होता है, उसे विध्यारसंक्रम कहते हैं। __यह विध्यातसंक्रम किन प्रकृतियों का होता है, इसको स्पष्ट करने के लिये भव या गुण के आश्रय से जिन प्रकृतियों का बंध नहीं होता है, उन प्रकृतियों को बतलाते हैं कि मिथ्यात्वगुणस्थान में सोलह प्रकृतियों का बंधविच्छेद होता है, जिससे उन सोलह प्रकृतियों का सासादन आदि गुणस्थानों में गुणनिमित्तक बंध नहीं होता है। इसी प्रकार से सासादनगुणस्थान में पच्चीस प्रकृतियों का बंधविच्छेद होता है, उनका मिश्र आदि गुणस्थानों में बंध नहीं होता है। अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में दस प्रकृतियों का बंधविच्छेद होता है, उनका देशविरत आदि गुणस्थानों में, देशविरतगुणस्थान में चार का बंधविच्छेद होता है, उनका प्रमत्त आदि गुणस्थानों में, प्रमत्तगुणस्थान में छह प्रकृतियों का बंधविच्छेद होता है, उनका अप्रमत्त आदि गुणस्थानों में बंध नहीं होता है। जिस-जिस गुणस्थान से बंध नहीं होता है, उन-उन प्रकृतियों का वहाँ से विध्यातसंक्रम प्रवर्तित होता है । वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, देवद्विक, नरकद्विक, एकेन्दियादि जातिचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त और आतप इन सत्ताईस प्रकृतियों को नारक और सनत्कुमार आदि स्वर्ग के देव भवनिमित्त से बांधते नहीं हैं। तिर्यंचद्विक और उद्योत के साथ पूर्वोक्त सत्ताईस प्रकृतियों को आनत आदि के देव बांधते नहीं हैं। संहननषट्क, प्रथम संस्थान को छोड़कर शेष संस्थान, नपुसकवेद, मनुष्यद्विक, औदारिकसप्तक, एकान्त तिर्यंचगतिप्रायोग्य स्थावरदशक, दुर्भग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy