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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४७
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उदयावलिका से ऊपर की समय प्रमाण स्थिति को अपवर्तनाकरण के द्वारा नीचे के अपने ही उदयावलिका के समयाधिक तीसरे भाग में संक्रमित करता है । वह संज्वलन लोभ का जघन्य स्थितिसंक्रम कहलाता है और उसका स्वामी सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानवी जीव है । ___ इसी प्रकार क्षीणमोहगुणस्थान में ज्ञानावरणपंचक, अंतरायपंचक, चक्षुदर्शनावरण आदि दर्शनावरणचतुष्क इन चौदह प्रकृतियों की सत्ता में समयाधिक एक आवलिका स्थिति शेष रहे तब उदयावलिका से ऊपर की समय प्रमाण स्थिति को अपवर्तनासंक्रम द्वारा अपनी ही उदयावलिका के नीचे के समयाधिक तीसरे भाग में जो संक्रमण होता है, वह उन प्रकृतियों का जघन्य स्थितिसंक्रम है और उसका स्वामी क्षीणमोहगुणस्थानवी जीव है । तथा
चारों आयु की स्थिति भोगते-भोगते सत्ता में जब समयाधिक आवलिका शेष रहे तब उदयावलिका से ऊपर की उस समयप्रमाण स्थिति को अपनी-अपनी उदयावलिका के नीचे के समयाधिक तीसरे भाग में जो संक्रम होता है, वह उनका जघन्य स्थितिसंक्रम कहलाता है और उसका स्वामी उस-उस आयु का उदय वाला जीव है।
जघन्य समयप्रमाण स्थिति को जीव तथास्वभाव से उदयावलिका के प्रथम समय से-उदय समय से लेकर समयाधिक तीसरे भाग में संक्रमित करता है । जैसे कि आवलिका के नौ समय मान लें तो आदि के चार समय में संक्रमित करता है, अन्य समयों में संक्रमित नहीं करता है।
उपर्युक्त समस्त प्रकृतियों की यस्थिति समयाधिक आवलिकाप्रमाण जानना चाहिये । तथा
खविऊण मिच्छमीसे मणुओ सम्मम्मि खवयसेसम्मि । चउगइउ तओ होउं जहण्णठितिसंकमस्सामी ॥४७॥ शब्दार्थ-खविऊण-क्षय करके, मिच्छमीसे-मिथ्यात्व और मिश्रमोहनीय को, मणुओ-मनुष्य, सम्मम्मि–सम्यक्त्वमोहनीय, खवयसेसम्मि
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