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________________ संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४३ प्रकृतियां उत्कृष्ट संक्रमस्थिति एवं यत्स्थिति संक्रमस्थितिप्रमाण मिथ्यात्वरहित शेष आवलिकाद्विकहीन बंधोत्कृष्टा संक्रमोत्कृष्टा आवलिकात्रिकहीन मिथ्यात्व सम्यक्त्व मिश्र मोह | आवलिकाद्विकाधिक नीय अन्तर्मु . हीन ७० को. को. सागरोपम अंतर्मुहूर्तहीन ७० को को. सागरी. १०३ यत्स्थितिप्रमाण एक आवलिकाहीन आवलिकाद्विकहीन अन्तर्म हीन ७० को. को. सागरी. सावलिकान्तर्मुहूर्तहीन ७० को.को.सागरोपम आयुकर्म की स्थिति : जघन्य स्थितिसंक्रमप्रमाण अब आयुकर्म की यत्स्थिति एवं जघन्य स्थितिसंक्रम के प्रमाण का प्रतिपादन करते हैं । साबाहा आउठिई आवलिगुणा उ जट्ठिति सट्ठाणे । एक्का ठिई जहण्णो अणुदइयाणं निहयसेसा ॥ ४३ ॥ शब्दार्थ - साबाहा -- अदाधासहित आउठिई - आयु की स्थिति, आवलिगूणा – आवलिकान्यून, उ — और जट्ठिति यत्स्थिति, सठाणे- स्वस्थान में, एक्का — एकस्थानक का, ठिई — स्थिति, जहण्णो – जघन्य, अणुदइयाणं - अनुदयवती प्रकृतियों का निहयसेसा --- हतशेषं । गाथार्थ - स्वस्थानसंक्रम हो तब आवलिकान्यून अबाधासहित जो स्थिति वह आयुकर्म की यत्स्थिति है तथा एकस्थानक का संक्रम एवं अनुदयवती प्रकृतियों की हतशेष स्थिति का संक्रम जघन्यसंक्रम कहलाता है । विशेषार्थ - आयु में मात्र उद्वर्तना - अपवर्तना ही होती है किन्तु अन्यप्रकृतिनयनसंक्रम नहीं होता है । उसमें भी व्याघातभाविनी अप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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