SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६ सर्वजीव से अनन्तगुणे अनन्त से गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त हो उतने परमाणु ध्र वाचित्त उत्कृष्ट वर्गणां में होते हैं । इस वर्गणा को ध्र व इसलिये कहते हैं कि जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त अनुक्रम से बढ़ते हुए एक-एक परमाणु वाली वर्गणायें लोक में अवश्य होती हैं, किसी भी समय इन वर्गणाओं से लोक विहीन नहीं होता है। कदाचित् इनमें की कोई एक वर्गणा नष्ट हो तो उसके स्थान पर अन्य वर्गणा उत्पन्न हो जाती है और इस वर्गणा के साथ विशेष रूप से अचित्त विशेषण इसलिये लगाया गया है कि जो वर्गणायें जीव के साथ जुड़ती हैं, वे वर्गणायें उपचार से सचित्त भी कहलाती हैं, जैसे कि औदारिकादि वर्गणायें । परन्तु ये वर्गणायें और इसके अनन्तर कही जाने वाली वर्गणायें कभी भी जीव के साथ संबंधित होने वाली नहीं हैं । जीव उनको किसी भी समय ग्रहण नहीं करता है। इसी वात को अचित्त विशेषण द्वारा स्पष्ट किया है। अध्रुवाचित्त वर्गगा ध्र वाचित्त उत्कृष्ट वर्गणा से एक अधिक परमाणु की स्कन्ध रूप अध्र वाचित्त वर्गणा होती है । उससे एक-एक अधिक परमाणु की स्कन्ध रूप दूसरी आदि वर्गणायें वहाँ तक कहना चाहिये कि जब इनकी उत्कृष्ट अध्र वाचित्त वर्गणा हो जाये। जघन्य वर्गणा की अपेक्षा उत्कृष्ट वर्गणा अनन्त गुणी है । अर्थात् जघन्य वर्गणा में जितने परमाणु हैं उनको सर्वजीवों से अनन्तगुणे अनन्त से गुणा करने पर प्राप्त परमाणु उत्कृष्ट वर्गणा में होते हैं। ___ इनको अध्र वाचित्त वर्गणायें इसलिये कहते हैं कि जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त चढ़ते हुए परमाणु वाली ये सभी वर्गणायें लोक में हों ही ऐसा नियम नहीं है । कोई वर्गणा कदाचित् होती है और कोई कदाचित् नहीं भी होती है। इसी कारण इन वर्गणाओं को अध्र वाचित्त अथवा सांतर-निरन्तर वर्गणा कहते हैं।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy