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________________ ४६ पंचसंग्रह : ६ एक अधिक परमाणु की स्कन्ध रूप वर्गणायें वहाँ तक कहना चाहिये कि उत्कृष्ट अग्रहण वर्गणा हो । जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट अग्रहण वर्गणा में अनन्त गुण परमाणु होते हैं। मनोवर्गणा ___ जिन पुद्गलस्कन्धों को जीव ग्रहण करके सत्यादि मन रूप में परिणमित करके और उनका अवलंबन लेकर छोड़ता है, उसे मनः प्रायोग्यवर्गणा कहते हैं। पूर्वोक्त अग्रहणप्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा की अपेक्षा एक परमाणु जिसमें अधिक हो वह मनःप्रायोग्य जघन्य ग्रहण वर्गणा होती है। उससे दो अधिक परमाणु वाली दूसरी मनःप्रायोग्यग्रहणवर्गणा होती है । इस प्रकार एक-एक अधिक परमाणु की स्कन्ध रूप वर्गणायें वहाँ तक कहना चाहिये कि उत्कृष्ट मनःप्रायोग्यग्रहणवर्गणा हो। जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा के विशेषाधिक परमाणु होते हैं । उस मनोयोग्य उत्कृष्ट ग्रहणवर्गणा से एक अधिक परमाणु की स्कन्ध रूप जघन्य अग्रहण प्रायोग्य वर्गणा होती है । दो अधिक परमाणु की स्कन्ध रूप दूसरी अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा होती है। इस प्रकार एक-एक परमाणु को बढ़ाते हुए वहाँ तक कहना कि अग्रहणप्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा हो । जघन्य वर्गणा उत्कृष्ट वर्गणा में अनन्त गुणे परमाणु होते हैं। कार्मण वर्गणा जीव जिन वर्गणाओं को ग्रहण करके ज्ञानावरणादि आठ कर्म रूप में परिणत करते हैं उन्हें कार्मण वर्गणा कहते हैं । - पूर्वोक्त अग्रहणयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु जिस वर्गणा में अधिक हो वह कर्म-योग्य जघन्य ग्रहण वर्गणा होती है। इस जघन्य स्कन्ध से एक परमाणु जिस स्कन्ध में अधिक हो वह दूसरी कर्म प्रायोग्य ग्रहण वर्गणा है। इस प्रकार एक-एक परमाणु को अधिक करते हुए वहाँ तक कहना चाहिये कि उत्कृष्ट कर्मप्रायोग्य ग्रहण
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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