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________________ परिशिष्ट १८ असत्कल्पना द्वारा तीव्रता-मंदता की स्थापना की रूपरेखा प्रकृतियों में जैसे परावर्तमान, अपरावर्तमान शुभ, अशुभ की अपेक्षा अनुभागबंधस्थानों की अनुकृष्टि का विचार किया गया है, उसी प्रकार से अब . उनकी तीव्रता-मंदता का स्पष्टीकरण असत्कल्पना के प्रारूप द्वारा करते हैं। तीव्रता-मंदता का परिज्ञान करने के लिये यह सामान्य नियम है कि सभी प्रकृतियों का अपने-अपने जघन्य अनुभागबंध से आरम्भ कर उत्कृष्ट अनुभागबंध तक प्रत्येक स्थितिबंधस्थान में उत्तरोत्तर अनुक्रम से पूर्वापेक्षा अनन्तगुण, अनन्तगुण अनुभाग समझना चाहिये । लेकिन अशुभ और शुभ प्रकृतियों की अपेक्षा विशेषता इस प्रकार है १. शुभ प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिस्थान से प्रारम्भ कर जघन्य स्थितिस्थाव तक उत्तरोत्तर नीचे-नीचे अनुक्रम से अनन्तगुण, अनन्तगुण अनुभाग समझना चाहिये। २. अशुभ प्रकृतियों का जघन्य स्थितस्थान से आरम्भ कर उत्तरोत्तर ऊपर-ऊपर के क्रमानुसार उत्कृष्ट स्थितिस्थान में अनन्तगुण-अनन्तगुण अनुभाग होता है। इस प्रकार सामान्य से तीव्रता-मंदता का नियम बतलाने के पश्चात् असत्कल्पना के प्रारूप द्वारा अपरावर्तमान ५५ अशुभ प्रकृतियों की तीव्रतामंदता को स्पष्ट करते हैं।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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