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________________ परावर्तमान २८ अशुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि : परिशिष्ट १४ ३०६ ४. अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिस्थान से सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण स्थिति तक की स्थितियां सातावेदनीय के साथ परावर्तमान रूप से बंधती हैं । वे परस्पर आक्रांत स्थितियां हैं, जिन्हें इस प्रकार की पंक्ति से सूचित किया है । वहाँ तक 'तानि अन्यानि च' इस क्रम से अनुकृष्टि कहना चाहिए । ५. इसके आगे उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त 'तदेकदेश और अन्य के क्रम से अनुकृष्टि कहना चाहिए । जिसे प्रारूप में २१ से ३० तक के अंकों द्वारा बताया है । ६. पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितियों के जाने पर जघन्य अनु. स्थान की अनुकृष्टि समाप्त होती है । उससे आगे उत्तर - उत्तर के स्थान में पूर्व - पूर्व के एक-एक स्थान की अनुकृष्टि समाप्त होती है । यह क्रम असाता की उत्कृष्ट स्थिति तक जानना चाहिए । כם
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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