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________________ अपरावर्तमान ४६ शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि : परिशिष्ट १३ ३०७ 'अन्य' को दो A से १९वें अंक में बताया है। इस प्रकार पल्योपम के असंख्यातवें भाग स्थितियां अतिक्रांत होती हैं । यहाँ पर उत्कृष्ट स्थितिस्थान से प्रारम्भ हुई अनुकृष्टि समाप्त होती है । जो उत्कृष्ट स्थितिस्थान २० के अंक से 8 के अंक तक जानना । ____३. इसके बाद के अधस्तनस्थान में एकसमयोन उत्कृष्ट स्थितिबन्ध के प्रारम्भ में जो अनु. स्थान थे, उनकी अनुकृष्टि समाप्त होती है। इस प्रकार तब तक कहना चाहिए जब तक जघन्य स्थिति का स्थान प्राप्त होता है और उन कर्म प्रकृतियों की जघन्य स्थिति होती है। ४. अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थिति अनुकृष्टि के अयोग्य है। अतः उसमें अनुकृष्टि का विचार नहीं किया जाता है जो १ से ८ अंकों द्वारा प्रदर्शित की है।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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