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________________ असत्कल्पना द्वारा अनुकृष्टि प्ररूपणा का स्पष्टीकरण : परिशिष्ट ११ ३०१ त्कृष्ट स्थितिबन्ध के अन्तिम कन्डक के प्रथम स्थितिस्थान की अनुकृष्टि उसी कन्डक के चरम स्थितिस्थान रूप तीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण चरम स्थितिबन्धस्थान में पूर्ण होती है । किन्तु सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक तथा मध्यम चार संस्थान और चार संहनन इन चौदह प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अपनी-अपनी प्रतिपक्ष प्रकृतियों से कम है, अतएव अभव्य प्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्धस्थान से अपने-अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तक के सभी और कुछ नये-नये अध्यवसाय होते हैं । ये सभी स्थितियाँ आक्रान्त होती हैं इसलिए इन चौदह प्रकृतियों में उपर्युक्त असातावेदनीय आदि की तरह शुद्ध स्थितिस्थान नहीं होते हैं । सातवीं नरकपृथ्वी के नारक के सिवाय दूसरा कोई भी जीव सम्यक्त्वादि गुणों की प्राप्ति के समय तिर्यंचद्विक और नीचगोत्र नहीं बाँधते हैं, परन्तु सातवीं नारक के जीव मिथ्यात्वावस्था में इन तीन प्रकृतियों को अवश्य बाँधने वाले होने से उपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति के पूर्व समय में भी इन्हीं तीन प्रकृतियों को बाँधते हैं और उस समय अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध से भी अत्यल्प स्थितिबन्ध होता है, अतः मिथ्यात्व के चरम समय में तिथंच गति आदि इन तीन प्रकृतियों को सातवीं नरक पृथ्वी का नारक जितना जघन्य स्थितिबन्ध करता है, वहाँ से अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध तक इन तीन प्रकृतियों के अध्यवसायों की अनुकृष्टि मतिज्ञानावरण आदि प्रकृतियों के समान होती है और अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध से अपने-अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तक असातावेदनीय के समान अनुकृष्टि होती है । अर्थात् अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध से तिर्यंचद्विक का अठारह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण और नीचगोत्र का दस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण स्थितिबन्ध आये, वहाँ तक के स्थितिस्थान आक्रांत होते हैं और तिर्यंचद्विक के समयाधिक अठारह कोडाकोडी सागरोपम से और नीचगोत्र के समयाधिक दस कोडा कोडी सागरोपम से ऊपर के बीस कोडाकोडी सागरोपम तक के सभी स्थितिस्थान शुद्ध होते हैं । त्रसचतुष्क सामान्य रूप से शुभ प्रकृति वर्ग में गर्भित हो सकता है,
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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