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________________ असत्कल्पना से योगस्थानों का स्पष्टीकरण : परिशिष्ट ५ २७३ इस प्रकार तृतीय स्पर्धक में १५४० आत्म- प्रदेशों की चार बर्गणाएँ । चतुर्थ स्पर्धक २४४ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले २४४ करोड़ २ २४४ करोड़ ३ २४४ करोड़ ४ , २४५ करोड़ ३ २४५ करोड़ ४ "" " "1 11 १३८० इस प्रकार चतुर्थ स्पर्धक में १३८० आत्म- प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । पांचवा स्पर्धक २४५ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले २४५ करोड़ २ 11 11 ३६० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ३५० द्वितीय वर्गणा ३४० तृतीय वर्गणा ३३० चतुर्थ वर्गणा 30 11 "" 11 11 ३२० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ३१० द्वितीय वर्गणा ३०० तृतीय वर्गणा २६० चतुर्थ वर्गणा 11 १२२० इस प्रकार पांचवें स्पर्धक में १२२० आत्म- प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । छठा स्पर्धक २४६ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले २४६ करोड २ २४६ करोड़ ३ २४६ करोड़ ४ " " २८६ आत्म- प्रदेशों की प्रथम वर्गणा २८८ द्वितीय वर्गणा २८७ तृतीय वर्गणा चतुर्थ वर्गणा २८६ 33 11 " ११५० इस प्रकार छठे स्पर्धक में १९५० आत्म- प्रदेशों की चार वर्गणाएँ ।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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