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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०८
___२३१ स्थिति-समुदाहार की तीवमंदता
सव्वजहन्नस्स रसादणंतगुणिओ य तस्स उक्कोसो। ठिबंधे ठिइबंधे अज्झवसाओ जहाकमसो ॥१०॥ शब्दार्थ-सव्वजहन्नस्स–सर्व जघन्य के, रसाद्-रस से, अणंतगुणिओ --अनन्त गणित, य-और, तस्स-उसी का, उक्कोसो-उत्कृष्ट, ठिइबंधेठिइबंधे-स्थितिबंध-स्थितिबंध में (प्रत्येक स्थितिबंध में), अज्झवसाओअध्यवसाय, जहाकमसो-अनुक्रम से ।
गाथार्थ-सर्वजघन्य स्थितिबंध के सर्व जघन्य रस से उसी का उत्कृष्ट रस अनन्तगुण होता है। इस प्रकार प्रत्येक स्थितिस्थान में अनुक्रम से अनन्तगुण कहना चाहिये। विशेषार्थ-सबसे अल्प स्थितिबंध करने पर स्थितिबंध के हेतुभूत जो जघन्य अध्यवसाय हैं, उनका संक्लेश रूप अथवा विशूद्धि रूप रस--स्वभाव, सामर्थ्य-अल्प है। उससे उसी स्थितिबंध के हेतुभूत उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुण सामर्थ्य वाले होते हैं । तात्पर्य यह है कि जघन्य अध्यवसाय से उत्कृष्ट अध्यवसाय उतना तीव्र है। इस प्रकार प्रत्येक स्थितिबंध में स्थितिबंध के हेतुभूत जघन्य उत्कृष्ट अध्यवसाय उक्त प्रकार से अनन्तगण तीव्र कहना चाहिये।
वह इस प्रकार-ज्ञानावरण की जघन्य स्थिति बांधने पर स्थितिबंध का हेतुभूत जघन्य अध्यवसाय मंद प्रभाव वाला है, उसी से उसी जघन्य स्थिति को बाँधने पर स्थितिबंध में हेतुभत उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुण सामर्थ्य वाला है, उससे समयाधिक जघन्य स्थिति बांधने पर स्थितिबंध में हेतुभूत जघन्य अध्यवसाय अनन्तगण सामर्थ्य वाला है, उससे उसी समयाधिक जघन्य स्थितिबंध में हेतुभूत कषायोदयजन्य उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुण सामर्थ्य वाला है। इस प्रकार प्रत्येक स्थितिस्थान में जघन्य, उत्कृष्ट स्थिति-बंधाध्यवसायस्थान को अनन्तगुण कहना चाहिये यावत् उत्कृष्ट स्थितिबंध में हेतुभूत अंतिम सर्वोत्कृष्ट कषायोदयजन्य अध्यवसाय अनन्तगुण सामर्थ्य वाला हो।