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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६५, ६६, ६७, ६८ २०१ अपेक्षा कंडक प्रमाण स्थानों में उत्कृष्ट रस कहा, उससे ऊपर के यानि कंडक के शेष संख्यातवें भाग के पहले स्थितिस्थान में जघन्य रस अनतगुण होता है। उससे शुरुआत के जो कंडकप्रमाण स्थितिस्थानों का उत्कृष्ट रस कहा, उससे बाद के स्थितिस्थान में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, उससे उसके बाद के स्थितिस्थान में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, इस प्रकार पूर्व-पूर्व स्थितिस्थान से उत्तरोत्तर स्थितिस्थान में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण वहाँ तक कहना चाहिये, यावत् कंडक प्रमाण स्थितिस्थान पूर्ण हों। उससे कंडक के शेष संख्यातवें भाग के दूसरे स्थितिस्थान में जघन्य रस अनन्तगुण होता है । उससे पूर्व जिन दो कंडक प्रमाण स्थानों में उत्कृष्ट रस कहा, उसके बाद के कंडक प्रमाण स्थानों में पूर्व-पूर्व से उत्तरोत्तर अनन्तगुण उत्कृष्ट रस कहना चाहिये। इस प्रकार कंडक के शेष संख्यातवें भाग के एक-एक स्थितिस्थान में जघन्य रस और नीचे एक-एक कंडक प्रमाण स्थितिस्थानों में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण वहां तक कहना चाहिये यावत् 'वह और अन्य' इस प्रकार की अनुकृष्टि पूर्ण होने के बाद जहां से 'तदेकदेश और अन्य' यह अनुकृष्टि प्रारम्भ होती है। उस जघन्य रसबंध के विषयभूत स्थितिस्थान का कंडक पूर्ण होता है और जितनी स्थितियां प्रतिपक्ष से आक्रान्त उत्कृष्ट रस की विषयभूत हैं, उतनी स्थितियां भी पूर्ण हों। यानि जितने स्थितिस्थान प्रतिपक्ष से आक्रान्त हैं, उतने स्थितिस्थानों में उत्कृष्ट रस और जो प्रतिपक्ष से आक्रांत नहीं, उनमें के शुरुआत के एक कंडक प्रमाण स्थानों में जघन्य रस परिपूर्ण हो। प्रतिपक्ष प्रकृतियों से अनाक्रांत स्थितियों में उपघात की तरह कहना चाहिये । वह इस प्रकार कि शतपृथक्त्व सागरोपम के अंतिम कंडक के उत्कृष्ट अनुभाग से प्रतिपक्ष से अनाक्रांत पूर्वोक्त जघन्य रस के विषयभूत पहले कंडक की ऊपर की पहली स्थिति में जघन्य रस अनन्तगुण, उससे शतपृथक्त्व सागरोपम की ऊपर के पहले कंडक की पहली स्थिति में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, उससे कंडक से ऊपर
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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