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________________ पंचसंग्रह : ६ १५२ तक निरंतर बंधता है । सर्वप्रथम त्रस जीवों की अपेक्षा इसका विचार करते हैं— त्रस जीवों द्वारा जो स्थान निरंतर बंधते हैं, वे कम-से-कम दो, तीन आदि और अधिक-से-अधिक आवलिका के असंख्यातवें भाग के समय प्रमाण होते हैं । इसका कारण यह है कि त्रस जीव थोड़े हैं और रसबंध के स्थान उनसे असंख्यातगुणे अधिक हैं, जिससे सभी स्थान त्रस जीवों द्वारा निरंतर नहीं बांधे जा सकते हैं किन्तु कितने ही स्थान निरंतर बंधते हैं तथा अंतर भी पड़ता है । वह इस प्रकार कि कुछ स्थान नहीं बंधते हैं और कुछ एक स्थान बंधते हैं । इस प्रकार प्रत्येक समय होता है । अर्थात् निरंतर कितने स्थान बंधते हैं, इसका यहाँ विचार किया और अन्तर पड़ता है— नहीं बंधते हैं तो कितने नहीं बंधते हैं, इसका विचार पूर्व गाथा में किया जा चुका है । काल प्रमाण प्ररूपणा इस प्रकार से निरंतर बंधने वाले स्थानों का विचार करने के बाद अब यह बताते हैं कि अनेक जीवों की अपेक्षा कोई भी एक स्थान निरन्तर कितने काल तक बंधता है और कितने काल तक बंधशून्य नहीं रहता है 1 प्रायोग्य कोई भी एक स्थान अन्य अन्य जीवों द्वारा निरंतर बंधे तो उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भाग के समय प्रमाण ही बंधता है और उसके बाद अवश्य ही बंधशून्य हो जाता है, यानि उसे एक भी त्रस जीव नहीं बांधता है । किसी भी स्थान का जघन्य निरंतर बंधकाल एक, दो समय है, अर्थात् कम-से-कम एक या दो समय बंधने के बाद वह स्थान बंधशून्य हो जाता है । परन्तु स्थावर जीवों के योग्य प्रत्येक अनुभागबंधस्थान अन्य - अन्य स्थावर जीवों द्वारा निरन्तर बंधते ही रहते हैं, किन्तु किसी भी काल में बंधशून्य नहीं होते हैं। क्योंकि स्थावर जीव अनन्त हैं । इस प्रकार अनन्त जीवों की अपेक्षा बंधकाल का कथन जानना
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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