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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६० १४५ शब्दार्थ-होंति-होते हैं, परंपरवुड्ढीए-परम्परा वृद्धि में, थोवगाणंतभागवुड्ढा-अनन्तभागवृद्ध स्थान अल्प; जे–जो, अस्संखसंखगुणियाअसंख्यात और संख्यात गुण, एक-एक, दो-दो-दो-दो, असंखगुणा-असंख्यात गुण । गाथार्थ-परम्परा वृद्धि में जो अनन्तभागवृद्धि के स्थान हैं, वे अल्प हैं, उससे उसके बाद (असंख्यात भाग वृद्ध रूप) एक स्थान असंख्यातगुण है, उससे दो स्थान उत्तरोत्तर संख्यातगुण हैं, और उनसे उनके बाद के दो स्थान उत्तरोत्तर असंख्यातगुण हैं । विशेषार्थ-परम्परा से वृद्धि का विचार करने पर जो अनन्तभागवृद्ध स्थान हैं, वे सर्व स्तोक हैं-'थोवगाणंतभाग वुड्ढा' । उसके बाद का असंख्यातभागगुणवृद्ध रूप एक स्थान असंख्यातगुण है यानि अनन्तभागवृद्ध स्थानों से असंख्यातभागवृद्ध स्थान असंख्यातगुण है। उनसे उसके बाद के दो—संख्यातभागवृद्ध और संख्यातगुणवृद्ध स्थान पूर्व-पूर्व से संख्यातगुण हैं, और उनसे भी उसके बाद के दो वृद्धि स्थान-असंख्यातगुणवृद्ध और अनन्तगुणवृद्ध स्थान असंख्यातगुण हैं। ___ उक्त संक्षिप्त कथन का तात्पर्य इस प्रकार है--अनन्तभागवृद्ध स्थान अल्प हैं। क्योंकि पहले अनन्तभागवृद्ध स्थान से लेकर वे स्थान एक कंडक जितने ही होते हैं, उससे अधिक नहीं होते हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्ध स्थान असंख्यातगुण हैं और ये असंख्यातभागवृद्ध स्थान असंख्यातगुण इस प्रकार जानना चाहिये--अनन्तभागाधिक कंडक के अन्तिम स्थान से, उससे पीछे का स्थान असंख्यातभागाधिक है। अब यदि अनन्तभागवृद्ध कंडक के ऊपर का पहला असंख्यातभागवृद्ध स्थान अनन्तभागवृद्ध कंडक के अन्तिम स्थान की अपेक्षा असंख्यातभाग अधिक है तो उसके पीछे होने वाले अनन्तभागाधिक स्थान भी उस अन्तिम स्थान की अपेक्षा असंख्यातभागाधिक ही हैं। क्योंकि जो अनन्तभागाधिक स्थान है, वह तो पहले असंख्यातभागाधिक स्थान की अपेक्षा से है, अनन्तभागवृद्ध कंडक के अन्तिम स्थान की
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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