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________________ १३४ पंचसंग्रह : ६ उदाहरणार्थ-पहले संख्यातगुणवृद्ध स्थान से नीचे ऐसे अनन्तभागवृद्ध स्थान पूर्व में कहे जा चुके हैं । उतने ही पहले और दूसरे संख्यातगुणवृद्ध स्थान के बीच में, उतने ही दूसरे और तीसरे के बीच में, उतने ही तीसरे और चौथे के बीच में, इस प्रकार कुल मिलाकर चार सौ और उतने ही उसके बाद, इस प्रकार कुल पाँच सौ अनन्तभागवृद्ध स्थान होते हैं। उनमें से कंडक वर्ग-वर्ग में दो सौ छप्पन होते हैं । इसका कारण यह है कि चार का वर्ग सोलह और उसका वर्ग दो छप्पन होता है । तीन कंडकघन में एकसौ बानवें, तीन कंडकवर्ग में अड़तालीस होते हैं और अंतिम चार अर्थात् एक कंडक बढ़ता है, जिससे उपर्यक्त संख्या होती है। इसी प्रकार अनन्तगुणवृद्ध स्थान से पहले असंख्यातभागवृद्ध स्थानों के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिये। ___ इस प्रकार से त्र्यंतरित मार्गणा का विचार जानना चाहिये कि त्र्यंतरित अनन्तभागवृद्ध स्थान कितने होते हैं। अब चतुरंतरित मार्गणा का कथन करते हैं। चतुरंतरित मार्गणा-बीच में चार वृद्धि को छोड़कर विचार करने को चतुरंतरित मार्गणा कहते हैं। वह इस प्रकार-पहले अनन्तगुण वृद्धस्थान से नीचे अनन्तभागवृद्ध स्थान कितने ? तो उनका प्रमाण है-आठ कंडक-वर्ग-वर्ग, छह कंडकघन, चार कंडकवर्ग और एक कंडक जितने होते हैं-'अडकंड वग्गवग्गा वग्गा चत्तारि छग्घणा कंडं' । जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है पहले असंख्यातगुणवृद्ध स्थान से नीचे अनन्तभागवृद्ध स्थान कंडकवर्ग-वर्ग, तीन कंडकघन, तीन कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं । असंख्यातगुण-वृद्ध स्थान कंडक जितनी बार होते हैं, उससे उपयुक्त संख्या को कंडक से गुणा करने पर चार कंडकवर्ग-वर्ग आदि संख्या होती है । वह इस प्रकार-कंडकवर्ग-वर्ग को कंडक से गुणा करने पर चार कंडकवर्ग-वर्ग होते हैं । तीन कंडकघन को कंडक से गुणा करने पर तीन कंडकवर्ग-वर्ग होते हैं। तीन कंडकवर्ग को कंडक से गुणा
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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