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________________ बंधनकरण - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५२, ५३, ५४ १३१ हैं कि बाद के बड़े स्थान से पूर्व का एक स्थान छोड़कर इससे पूर्ण कितने स्थान होते हैं । जैसे कि पहले संख्यात भागवृद्ध स्थान से पूर्ण असंख्यातभागवृद्ध स्थानों को छोड़कर अनन्तभागवृद्ध स्थान कितने होते हैं ? तो वह इस प्रकार जानना चाहिये - ' एगंतराउ वुड्ढी वग्गो कंडस्स कंडं च' अर्थात् पहले संख्यात भागवृद्ध स्थान से पूर्व अनन्तभागवृद्ध स्थान एक कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं । इसका कारण यह है कि पहले असंख्यात भागवृद्धस्थान से पूर्व एक कंडक जितने अनन्तभाग वृद्ध स्थान होते हैं और असंख्यात भागवृद्ध स्थान अनन्तभागवृद्ध स्थानों से अन्तरित होते हैं यानि जितनी बार असंख्यात - भागवृद्ध स्थान होंगे, उतने कंडक अनन्तभाग वृद्धि के होते हैं । यदि असत्कल्पना से एक कंडक का प्रमाण चार माना जाये तो प्रारम्भ के अनन्तभागवृद्धि के कंडक के चार और असंख्यात भागवृद्धि चार बार होगी तो उसके मध्य में अनन्तभागवृद्धि चार कंडक जितनी बार होगी यानि सोलह बार होगी । इसका अर्थ यह हुआ कि कुल मिलाकर अनन्तभागवृद्धि के बीस स्थान संख्यातभागवृद्ध स्थान से पूर्व हुए । इन बीस स्थानों का अर्थ यह हुआ कि एक कंडक का वर्ग और उसके ऊपर एक कंडक है । इस प्रकार से एकान्तरितमार्गणा में कंडक वर्ग और कंडक प्रमाण वृद्धि होने को कारण सहित स्पष्ट करने के पश्चात् अब द्वयंतरित मार्गणा में कितनी वृद्धि होती है और कैसे ? इसको स्पष्ट करते हैं । द्वयंतरित मार्गणा - पहले असंख्यातगुणवृद्ध स्थान से नीचे अनन्तभागवृद्ध स्थान कंडकघनं, दो कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं । पहले असंख्यातगुणवृद्ध स्थान के नीचे असंख्यातभाग वृद्ध स्थान कंडकघन, दो कंडकवर्ग एक कंडक होते हैं । पहले अनन्तगुण १ किन्हीं भी दो संख्याओं का परस्पर गुणा करने पर प्राप्त संख्या को वर्ग कहते हैं । जैसे कि ४ X ४ = १६ । यह १६ संख्या ४ का वर्ग हुई ।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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