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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५२,५३,५४, १२६ कंडं-कंडक, कंडस्स घणो-कंडक का धन, वग्गो-वर्ग, दुगुणो-दो, दगंतराए-द्व यंतरित मार्गणा में, उ-और, कंडस्स-कंडक का, वग्गवग्गोवर्गवर्ग, घण-घन, वग्गा--वर्ग, तिगुणिया-त्रिगुणित, कंडं-कंडक । ___ अडकंड-आठ कंडक, वग्गवग्गा-वर्गवर्ग, वग्गा-वर्ग, चत्तारि-चार, छग्घणा कंडं-छह कंडक घन, कंडं-कंडक, चउ अंतर वुड्ढीए-चतुरंतरित वृद्धि में, हेटुट्ठाण परवणया-अधरतनस्थान प्ररूपणा के द्वारा । गाथार्थ—सभी वृद्धियां होने के पश्चात् अनन्तर वृद्धि एक कंडक मात्र और एकान्तरित वृद्धि कंडकवर्ग तथा कंडक प्रमाण होती है। द्व यंतरित मार्गणा में कंडक, कंडकघन, और दो कंडकवर्ग प्रमाण स्थान होते हैं तथा त्र्यंतरितमार्गणा में कंडकवर्गवर्ग, तीन कंडकघन तीन कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण स्थान होते हैं । चतुरंतरितमार्गणा में आठ कंडकवर्गवर्ग, चार कंडकवर्ग, छह कंडकघन और कंडक प्रमाण स्थान अधस्तनस्थान प्ररूपणा के द्वारा होते हैं। विशेषार्थ-उपरिवर्ती स्थान से अधोवर्ती स्थान की प्ररूपणा करने को अधस्तनस्थानप्ररूपणा कहते हैं । अनन्तगुणवृद्धि का स्थान सर्वोपरि स्थान है उससे नीचे के असंख्यात गुण वृद्धि आदि सभी वृद्धियों के स्थान अधस्तनस्थान कहलाते हैं । अनन्तगुणवृद्धि से अधोवर्ती स्थान अनन्तरवर्ती, एकान्तरित, द यंतरित, त्र्यंतरित और चतुरंतरित ये चार प्रकार के हो सकते हैं। क्योंकि अनन्तगुणवृद्धि से नीचे असंख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि और अनन्तभागवृद्धि वाले पांच स्थान हैं । अतः उनके अन्तर चार ही होने से अधस्तनस्थान प्ररूपणा के अनन्तर आदि चतुरंतरित पर्यन्त चार प्रकार ही हो सकते हैं। अब इनकी प्ररूपणा का विस्तार से स्पष्टीकरण करते हैं।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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