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________________ बंधनकरण- प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४१ १०५ विशेषाधिक, उससे तैजस का विशेषाधिक और उससे कार्मण - शरीर नाम का विशेषाधिक है । संघातनामकर्म का अल्प - बहुत्व शरीरनामकर्म के अनुसार जानना चाहिये । बंधननामकर्म में आहारक आहारक बंधन का दल विभाग अल्प है, उससे आहारक-तैजस बंधन का विशेषाधिक, उससे आहारककार्मण का विशेषाधिक और उससे आहारक- तैजस- कार्मण का विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय - वैक्रिय बंधन का विशेषाधिक है, उससे वैक्रियतैजस- बंधन का विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय - कार्मण का विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय - तैजस- कार्मणबंधन का विशेषाधिक है, उससे औद - रिक - औदारिक बंधन का विशेषाधिक है, उससे औदारिक- तैजस बंधन का विशेषाधिक है, उससे औदारिक- कार्मण का विशेषाधिक है, उससे औदारिक- तैजस- कार्मण का विशेषाधिक है, उससे तैजस- तैजस बंधन का विशेषाधिक है, उससे तैजस- कार्मण का विशेषाधिक है और उससे कार्मण-कार्मण-बंधन का विशेषाधिक दल विभाग है । संस्थाननामकर्म में प्रथम और अंतिम को छोड़कर मध्यवर्ती चार संस्थानों का प्रदेश प्रमाण अल्प है और स्वस्थान में चारों का परस्पर तुल्य है, उससे प्रथम समचतुरस्र संस्थान नाम का विशेषाधिक है और उससे हुण्डक संस्थान नाम का प्रदेश प्रमाण विशेषाधिक है । संहनननामकर्म में आदि के पांच संहननों का दल विभाग अल्प है और स्वस्थान में परस्पर तुल्य है एवं उससे छठे सेवार्त संहनन नाम कर्म का दल विभाग विशेषाधिक है । अंगोपांगनामकर्म में आहारक अंगोपांग का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उससे वैक्रिय - अंगोपांग का विशेषाधिक है और उससे औदारिकअंगोपांग का प्रदेश प्रमाण विशेषाधिक है । वर्णनाम में कृष्ण वर्ण का प्रदेशाग्र अल्प है, उससे नील वर्ण का विशेषाधिक है, उससे लोहित वर्ण का विशेषाधिक है, उससे पीत वर्ण
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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