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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २१ पढमा' । दो स्नेहाणु वाले जो-जो परमाणु हों उनका जो समुदाय उसकी दूसरी वर्गणा, तीन स्नेहाणु वाले परमाणुओं के समूह की तीसरी वर्गणा होती है। इस प्रकार के क्रम से बढ़ते हुए संख्यात स्नेहाणु वाले परमाणुओं की संख्यात वर्गणायें होती हैं। असंख्यात स्नेहाणु वाले परमाणुओं के समुदाय की असंख्यात वर्गणायें और अनन्त स्नेहाणु वाले परमाणुओं की बढ़ती हुई अनन्त वर्गणायें होती हैं। ___ इन वर्गणाओं में तथास्वभाव से अल्प-अल्प स्नेहाणु वाले परमाणु अधिक होते हैं और अधिक-अधिक स्नेह वाले परमाणु अल्प-अल्प होते जाते हैं । इसलिये पहली एक स्नेहाणु वाली वर्गणा में परमाणु अधिक हैं और जो परमाणु दो स्नेहाणु वाले हैं, वे एक स्नेहाणु वाले परमाणुओं की अपेक्षा असंख्यातवें भाग न्यून हैं। इसी क्रम से तीन, चार इत्यादि स्नेहाणु वाले परमाणुओं की वर्गणाओं में पूर्व-पूर्व वर्गणा से उत्तरोत्तर वर्गणा में परमाणु असंख्यातवें-असंख्यातवें भाग न्यूनन्यून होते हैं-असंखभागूण ते कमसो। इस प्रकार से उत्तरोत्तर असंख्यातवें-असंख्यातवें भाग न्यून न्यून परमाणु वाली वे वर्गणायें कितनी होती हैं ? ऐसा जिज्ञासु के पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं इय एरिस हाणीए जति अणंता उ वग्गणा कमसो। संखंसूणा तत्तो संखगुणूणा तओ कमसो ॥२१॥ तत्तो असंखगुणूणा अणंतगुणऊणियावि तत्तोवि। . शब्दार्थ-इय-इस तरह, एरिसहाणीए-इस प्रकार की हानि वाली, जंति होती हैं, अणंता-अनन्त, उ-और, वग्गणा-वर्गणायें, कमसोअनुक्रम से। संखंसूणा–संख्यातवें भाग हीन, तत्तो-तत्पश्चात्, संखगुणूणा–संख्यातगुणहीन, तओ-उसके बाद, कमसो-क्रमशः, तत्तो–उसके अनन्तर,
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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