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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६ परमाणुओं का प्रमाण बताने के लिये सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग से गुणा करने का कारण यह है कि कार्मण वर्गणाओं का ग्रहण योग के अनुसार होता है। जघन्य योग हो तब जघन्य कर्मप्रदेशसंचय और उत्कृष्ट योग होने पर उत्कृष्ट कर्मप्रदेशसंचय होता है। जघन्य योगस्थान से उत्कृष्ट योगस्थान सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग से गुणित अधिक प्राप्त होता है। इसीलिए कर्मवर्गणाओं का ग्रहण भी सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग से गुणा करने पर जितना हो, उतना ही होता है। जघन्य योग में भी जीव अनन्त वर्गणाओं को ग्रहण करता है, उनको सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग के आकाश प्रदेशों से गुणा करने पर जितना प्रमाण हो उतनी वर्गणायें उत्कृष्ट योग से ग्रहण करता है । अर्थात् जघन्य योग होने पर कर्म वर्गणाओं का ग्रहण अल्प होने से जघन्य प्रत्येकशरीरी वर्गणायें प्राप्त होती हैं और उत्कृष्ट योग होने पर कर्मयोग्य वर्गणाओं का उत्कृष्ट प्रमाण में ग्रहण होने से उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरीवर्गणा प्राप्त होती है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि जघन्य योग हो, तब जघन्य प्रत्येकशरीरी वर्गणायें प्राप्त होती हैं और जैसे-जैसे योग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे अधिक-अधिक प्रत्येकशरीरी वर्गणायें प्राप्त होती जाती है और जब उत्कृष्ट योग होता है तब अधिक-से-अधिक चरम उत्कृष्ट परमाण वाली वर्गणायें प्राप्त होती हैं। इस प्रकार योग के साथ संबंध होने से और योग जघन्य से उत्कृष्ट सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग से गुणा करने पर जितना होता है उतना ही होने से प्रत्येकशरीरीवर्गणा में भी सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग से गुणा करने का संकेत किया है। __ प्रत्येकनामकर्म के उदय वाले जीवों के यथासंभव सत्ता में रहे हुए औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस् और कार्मण नामकर्म के पुद्गलों का अवलंबन लेकर सर्वजीवों से अनन्त गुण परमाणु वाली
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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