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पंचसंग्रह : ५
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क्रम गुणस्थान नाम
बंध प्रकृतियाँ
उदय
उदीरणा प्रकृतियाँ | प्रकृतियाँ प्रकृतियाँ
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अनिवृत्तिबादर १० | सूक्ष्मसंपराय ११ | उपशांतमोह
| क्षीणमोह १३ सयोगिकेवली
अयोगिकेवली
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उदय और उदीरणा के उक्त कथन के प्रसंग में शकाकार अपनी शंका प्रस्तुत करता है कि
ऐसा सिद्धान्त है कि उदय होने पर उदीरणा होती है । अतः जहाँ तक उदय हो वहाँ तक उदीरणा होती है अथवा उदय होने पर भी उदीरणा न हो, ऐसा भी सम्भव है ? तो अब इसका समाधान करते हैं। उदय, उदीरणा विषयक अपवाद जावुदओ ताव उदीरणा वि वेयणीय आउवज्जाणं । अद्धावलिया सेसे उदए उ उदीरणा नत्थि ॥६।।
शब्दार्थ-जावुदओ-जब तक उदय हो, ताव-तब तक, उदीरणाउदीरणा, वि-भी, वेयणीय आउवज्जाणं-वेदनीय और आयु के बिना, अद्धावलिया-एक समयावलिका, सेसे-शेष रहने पर, उदए--उदय, उकिन्तु, उदीरणा-उदीरणा, नस्थि-नहीं होती है।
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