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पंचसंग्रह : ५ को बतलाते हुए गुणस्थानों की अपेक्षा उनके स्वामियों का भी निर्देश किया है। ___ मूल प्रकृतियों की अपेक्षा उदयस्थान तीन हैं-१ आठप्रकृतिक, २ सातप्रकृतिक और ३ चारप्रकृतिक । आठप्रकृतिक उदयस्थान में सब ज्ञानावरणादिक मूल प्रकृतियों का, सातप्रकृतिक उदयस्थान में मोहनीय कर्म के बिना शेष सात का और चारप्रकृतिक उदयस्थान में चार अघाति कर्मों का ग्रहण होता है। ___ इसी प्रकार मूल प्रकृतियों के सत्तास्थान भी तीन हैं-१ आठप्रकृतिक, २ सातप्रकृतिक और ३ चारप्रकृतिक। आठप्रकृतिक सत्वस्थान में सब मूल प्रकृतियों की, सात प्रकृतिक सत्वस्थान में मोहनीय के बिना सात की और चारप्रकृतिक सत्वस्थान में चार अघाति कर्मों की सत्ता पाई जाती है।
मूल प्रकृतियों के उक्त तीन-तीन उदयस्थान और सत्तास्थान होने से यह आशय फलित होता है कि मोहनीय का उदय रहते आठों कर्मों का मोहनीय के बिना शेष तीन घाति कर्मों का उदय रहते सात का तथा चार अघाति कर्मों का उदय रहते चार का उदय स्थान होता है। इसी प्रकार सत्त्वस्थानों में भी मोहनीय के रहते आठों की, ज्ञानावरण-दर्शनावरण-अन्तराय के रहते मोहनीय के बिना सात की तथा चार अघाति कर्मों के रहते चार अघाति कर्मों की सत्ता पाई जाती है।
इन पूर्वोक्त उदयस्थानों और सत्तास्थानों का गुणस्थानों की अपेक्षा स्वामित्व इस प्रकार है
पहले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान तक अर्थात् आदि के दस गुणस्थानों तक आठों कर्मों का उदय और आठों कर्मों की सत्ता है-“जा सुहुमसंपराओ उइन्न संताई ताव सव्वाइं।' इसका कारण यह है कि इन सभी गुणस्थानों में मोहनीय कर्म का उदय और सत्ता होती है ।
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