________________
२८
पंचसंग्रह : ५
प्रकार उनतीस और तीस प्रकृतियों का बन्ध करने वाला एक, एक प्रकृति का बन्ध कर सकता है । जिससे उनकी अपेक्षा एक-एक अल्पतरबन्ध होता है ।
उ सभी ५, ४, ३, २, १, ३, १, १, १ बन्धस्थानों का जोड़ इक्कीस है । अतः कुछ मिलाकर इक्कीस अल्पतरबन्ध होते हैं ।
अवक्तव्यबन्ध-उपशांतकषाय संयत किसी भी प्रकृति का बन्ध न कर नीचे उतर कर और सूक्ष्मसंपराय उपशमक होकर एकः यश कीर्तिनाम को बांधता है। अथवा उपशांतमोह संयत मरण करके देवों में उत्पन्न होकर मनुष्यगति संयुक्त तीस या उनतीस प्रकृतियों को बांधता है तो उससे अवक्तव्यबन्ध तीन होते हैं । ये तीनों भूयस्कार रूप हैं। जिससे इनका नाम अवक्तव्यभूयस्कार भी है।
अवस्थितबन्ध-पूर्व में भूयस्कार बाईस, अल्पतर इक्कीस और अवक्तव्य तीन बताये हैं। इनका कुल जोड़ छियालीस होने से अवस्थितबन्ध भी उतने ही अर्थात् अवस्थितबन्ध छियालीस होते है ।
ANI
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org