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पंचसंग्रह : ५
ईसा पूरिता नपुं सगं तो असंखवासीसु । पल्लासंखियभागेण पुरए इत्थीवेयस्स ।। १५८ ||
शब्दार्थ - ईसाणे - ईशान स्वर्ग में, पूरिता- पूरकर, नपुं सगं नपुंसकवेद को तो - तत्पश्चात्, असं ववासीसु - असंख्यात वर्ष की आयु वालों में, पल्लासंखियमागेण - त्योपम के असंख्यातवें भाग द्वारा, पुरए - पूरित करने पर, इत्थीवेयस्स - स्त्रीवेद की ।
गाथार्थ - ईशान स्वर्ग में नपुंसकवेद को पूरकर तत्पश्चात् असंख्यात वर्ष की आयु वालों में उत्पन्न हो और वहाँ पल्योपम के असंख्यातवें भाग समय द्वारा स्त्रीवेद को पूरित करने पर उसकी उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता होती है ।
विशेषार्थ- कोई गुणितकर्माश सप्तमपृथ्वी का नारक वहाँ से निकलकर तिर्यंच होकर ईशान स्वर्ग में देव हो और वहाँ अति संक्लिष्ट परिणामों से बारम्बार नपुंसकवेद के बन्ध द्वारा उसका उत्कृष्ट प्रदेश संचय कर पहले संख्यात वर्ष की आयु वालों में और उसके बाद असंख्यात वर्ष की आयु वालों में उत्पन्न हो और वहाँ संक्लिष्ट परिणाम वाला होकर पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल द्वारा बारम्बार बंध से और नपुंसक वेद के दलिकों के संक्रम से स्त्रीवेद को पुष्ट करे और जब वह स्त्रीवेद पूर्णरूपेण पुष्ट हो तब उस युगलिया के स्त्रीवेद की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता होती है । तथा
१ भोगभूमिज को स्त्रीवेद की उत्कृष्टप्रदेश सत्ता का अधिकारी बताने का कारण यह प्रतीत होता है कि भोगभूमिज देवगतिप्रायोग्य कर्म बंध करते हैं और उनका बंध करते हुए अतिसंक्लिष्ट परिणाम वशात् स्त्रीवेद को बांधते हैं, नपुंसकवेद को नहीं । क्योंकि देवगति में नपुंसकवेद का उदय नहीं होता है तथा उनकी आयु अधिक होने से दीर्घकाल तक बांध सकते. हैं और जिन क्लिष्ट परिणामों से भोगभूमिज स्त्रीवेद का बंध करते हैं, वैसे परिणाम होने पर ईशान देव नपुंसकवेद को बांधते हैं । इसीलिये भोगभूमिज को स्त्रीवेद की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी बताया है ।
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