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________________ बधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६२ ३१५ क्रम प्रकृतियां उत्कृष्ट प्रदेशबंध जघन्य प्रदेशबंध स्वामित्व स्वामित्व मनुष्य प्रायोग्य पच्चीस मनुष्य योग्य उनतीस का बंधक का बंधक २० । मनुष्यद्विक तिर्यंचद्विक, वर्णचतु- | तेईस के बंधक मिथ्या- | तिर्यंचप्रायोग्य तीस ष्क, तैजस, कार्मण, | दृष्टि मनुष्य, तिर्यंच का बंधक अगुरुलघु, निर्माण, उपघात, औदारिक शरीर, हुंडकसंस्थान, प्रत्येक, बादर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश.कीति औदारिक-अंगोपांग, | सप्रायोग्य पच्चीस | तियंचप्रायोग्य तीस पंचेन्द्रियजाति, सेवार्त | का बंधक मनुष्य तिर्यंच का बंधक संहनन, प्रस पराघात, उच्छवास, एकेन्द्रियप्रायोग्य पर्याप्त पच्चीस का बंधक नरक के बिना तीन गति के जीव २४ विकलत्रिक स्वप्रायोग्य पच्चीस का | स्वप्रायोग्य तीस का बंधक मनुष्य, तिर्यंच | बंधक २५ | एकेन्द्रिय, स्थावर तेईस का बंधक मनुष्य, | एकेन्द्रियप्रायोग्य तिर्यच छब्बीस का बंधक आतप छब्बीस के बंधक नरक के बिना तीन गति के जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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