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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६२
३१३
कम म
.
प्रकृतियां
उत्कृष्ट प्रदेशबंध स्वामित्व
जघन्य प्रदेशबंध
स्वामित्व
ज्ञानावरणपंचक, अंत- | सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान- | सबसे अल्पवीर्य वाला रायपं वक, दर्शना- वर्ती उत्कृष्ट योगी लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म वरणचतुष्क
निगोदिया जीव भवाद्य
समय २. सातावेदनीय
३ असातावेदनीय
मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संज्ञी
४ निद्रा, प्रचला
उत्कृष्ट योगी, सप्तविध बंधक चौथे से | आठवें गुणस्थान के प्रथम भाग तक वर्तमान जीव
५ स्त्वाद्धित्रिक, मिथ्या- उत्कृष्ट योगी, सप्त
त्व, अनन्तानुबंधिचतु-विध बंधक, पर्याप्त कानपुसकवेद, स्त्रीवेद संज्ञी मिथ्यादृष्टि
अप्रत्याख्यानावरण- | चतुर्थ गुणस्थानवर्ती कषायचतुष्क
प्रत्याख्यानावरणकषाय- पंचम गुणस्थानवर्ती चतुष्क
संज्वलनक्रोध
नौवें गुणस्थान का ! द्वितीय भागवर्ती
| संज्वलन मान
नौवें गुणस्थान का |
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