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________________ बंधविघि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८८, ८६, ६० २६३ प्रत्याख्यानावरणकषायचतुप्क का उत्कृष्ट प्रदेशबंध उत्कृष्ट योग में वर्तमान देश विरति जीव के एक अथवा दो समय पर्यन्त होता है। क्योंकि उत्कृष्ट योगवशात् अधिक दलिकों को ग्रहण करता है तथा स्वजातीय मिथ्यात्व, अनन्तानुबंधि और अप्रत्याख्यानावरण रूप कषायों का बंध न होने से उनका भाग भो प्राप्त होता है । उसके एक या दो समय ही होने से सादि-सांत है । उस उत्कृष्ट प्रदेशबंध से गिरने पर अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है तब अथवा बधविच्छेदस्थान को प्राप्त कर वहाँ से पतन हो तब, मन्द योगस्थान में रहते हुए अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध होने पर उसकी सादि होती है । उस उत्कृष्ट बधयोग्य स्थान अथवा बंधविच्छेदस्थान को जिन्होंने प्राप्त नहीं किया, उनको अनादि और ध्रुव, अध्र व अभव्य, भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये। - भय और जुगुप्सा का उत्कृष्ट योगी अपूर्वकरणगुणस्थान में वर्तमान जीव को एक अथवा दो समय उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है । क्योंकि उत्कृष्ट योगवशात् वह अधिक वर्गणाओं को ग्रहण करता है एवं मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबंधि आदि अबध्यमान स्वजातीय प्रकृतियों के भाग का भी उनमें प्रवेश होता है । उसको उत्कृष्ट से भी मात्र दो समय होने से सादि-सांत है । उस उत्कृष्ट से अनुकृष्ट में जाने पर उस अनुत्कृष्ट की सादि है, अथवा बंधविच्छेदस्थान को प्राप्त कर वहाँ से गिर अबध्यमान मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबंधि आदि बारह कषायों का भाग मिलने से मय, जुगुप्सा के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वानं: अपूर्व करणगुणस्थानवी जीव बताया है । परन्तु अबध्यमान मिथ्यात्वादि तेरह प्रकृतियों का भाग प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थान में भी मिलता है । जिससे इन दो गुणस्थानवी जीवों को भी भय और जुगुप्सा के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी कहना चाहिये । परन्तु क्यों नहीं बताया ? यह विचारणीय है । विद्वज्जन इस पर विचार करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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