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________________ बंध प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६० २१५ इस प्रकार से मूल कर्म विषयक सादि आदि भंगों का विचार जानना चाहिये | अब उत्तर प्रकृति विषयक सादि आदि बंधभंगों का विचार करते हैं । उत्तर प्रकृति विषयक सादि-अनादि प्ररूपणा नाणंतराय दंसणचउवकसंजलणठिई अजहन्ना । चउहा साई अधुवा सेसा इयराण सव्वाओ || ६०|| शब्दार्थ-नाणंतराय - ज्ञानावरण व अंतराय पंचक, दंसणचउक्कदर्शनचतुष्क, संजल ---संज्वलनकषाय, ठिई- स्थिति, अजहन्ना - अजघन्य, चउहा - चार प्रकार की, साई - सादि, अधुवा - अध्र ुव, सेसा -- शेष, इयराण - इतर, सव्वाओ - समस्त, सभी । गाथार्थ ज्ञानावरणपंचक, अन्तरायपंचक, दर्शनावरणचतुष्क और संज्वलन कषायों की अजघन्य स्थिति चार प्रकार की है और शेष उत्कृष्ट आदि सादि और अध्रुव है एवं इतर सभी प्रकृतियों की उत्कृष्ट आदि सभी स्थितियां भी सादि, अध्रुव हैं । विशेषार्थ - गाथा में उत्तर प्रकृतियों के स्थितिबंध की सादिअनादि प्ररूपणा की है कि मतिज्ञानावरण आदि पांच ज्ञानावरण, दानान्तराय आदि पांच अन्तराय, चक्षुदर्शनावरण आदि दर्शनावरणचतुष्क और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ इन अठारह प्रकृतियों का अजघन्य स्थितिबंध चार प्रकार का -- सादि, अनादि, ध्रुव और. अध्रुव है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है ----- - ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क और अंतरायपंचक इन चौदह प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध क्षपक को सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के चरम समय में और संज्वलनचतुष्क का जघन्य स्थितिबंध क्षपक को अनिवृत्तिबादरसंप रायगुणस्थान में उनके बंधविच्छेद के समय होता है । उसका काल मात्र एक समय का है । इसलिए वह जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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