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पंचसंग्रह : ५ के उदयस्थान से नौ के उदयस्थान में एवं नौ के उदयस्थान से बीस के उदयस्थान में कोई नहीं जाता है। क्योंकि बीस और आठ का उदयस्थान सामान्य केवली के और नौ का उदयस्थान तीर्थंकर केवली के होता है। सामान्य केवली के उदयस्थान से तीर्थंकर केवली के उदयस्थान में अथवा तीर्थंकर केवली के उदयस्थान से सामान्य केवली के उदयस्थान में कोई भी जीव जाने वाला न होने से उनके भूयस्कार नहीं होते हैं। किन्तु इक्कीस के उदयस्थान से प्रारम्भ कर यथायोग्य रीति से संसार में अथवा समुद्घात में चौबीस आदि उदयस्थान में जाते हैं । अतएव आठ भूयस्कार होते हैं ।
. भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा स्वामित्व इस प्रकार है
एकेन्द्रिय के उदययोग्य २१ आदि पांच स्थान, मनुष्य के उदययोग्य २१, २६ और २८ आदि तीन स्थान, इस तरह पांच स्थान हैं। सकलेन्द्रिय (पंचेन्द्रिय), विकलेन्द्रिय तियंचों के उदययोग्य २१, २६ और २८ आदि तीन स्थान और भाषापर्याप्ति में ३१ का स्थान, इस प्रकार छह स्थान हैं । देव, नारक, आहारक और केवलसहित विशेष मनुष्य के २१, २५ तथा २७ आदि तीन, इस प्रकार पांच स्थान, समुद्घातकेवली के मनुष्य की तरह २१ में से २० का ही स्थान होता है, क्योंकि आनुपूर्वी कम हो जाती है तथा तीर्थकर समुद्घात केवली के तीर्थंकर प्रकृति बढ़ने से २१ का स्थान होता है, इस प्रकार केवली के २० और २१ के दो स्थान उदययोग्य हैं और विग्रहगति के कार्मण में २१ का ही स्थान होता है, मिश्रशरीरकाल में २४ आदि चार स्थान, शरीरपर्याप्तिकाल में २५ आदि के पांच स्थान, श्वासोच्छ्वासपर्याप्तिकाल में २६ आदि के पांच स्थान, भाषापर्याप्तिकाल में २६ आदि तीन स्थान उदययोग्य हैं और अयोगि में तीर्थकर के ६ का और सामान्य केवली के ८ का ये दो स्थान उदययोग्य हैं ।
दिगम्बर पंचसंग्रह सप्ततिका अधिकार गाथा ६७ से २०७ तक विस्तार से चौदह मार्गणाओं की अपेक्षा नामकर्म के उदयस्थानों के
स्वामियों का वर्णन किया है। Jain Education International
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