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________________ बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८ ७७ जिससे सम्यक्त्वमोहनीय सहित सात प्रकृत्यात्मक तीसरा अवक्तव्योदय होता है । अथवा यदि क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो और भय या जुगुप्सा इन दो में से किसी भी एक का अनुभव करे तो भी सात प्रकृति का उदय रूप तीसरा अवक्तव्योदय होता है तथा जब क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि भय या जुगुप्सा इन दो में से किसी भी एक का अनुभव करे तब अथवा क्षायिकसम्यग्दृष्टि भय और जुगुप्सा इन दोनों का युगपत् अनुभव करे तब आठप्रकृतिक उदयरूप चौथा अवक्तव्योदय होता है। क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि भय और जुगुप्सा इन दोनों का एक साथ अनुभव करता हो तब नौप्रकृतिक उदयरूप पांचवां अवक्तव्योदय होता है। इस प्रकार मोहनीयकर्म के पांच अवक्तव्योदय जानना चाहिये और इसके साथ ही मोहनीयकर्म के उदयस्थान एवं उनमें भूयस्कार आदि उदयों का कथन पूर्ण होता है। नामकर्म-अब नामकर्म के उदयस्थान और उनमें भूयस्कार आदि उदयों का विवेचन करते हैं। नामकर्म के बारह उदयस्थान इस प्रकार हैं-१-बीसप्रकृतिक २-इक्कीसप्रकृतिक ३-चौबीसप्रकृतिक ४-पच्चीसप्रकृतिक ५-छब्बीसप्रकृतिक ६–सत्ताईसप्रकृतिक ७-अट्ठाईसप्रकृतिक में क्षायोपश मिक सम्यक्त्व प्राप्त करता है । पूर्वभव की उपशमश्रेणि का सम्यक्त्व यहाँ नहीं लाता है । इसलिये लिखा है कि जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि न हो तो वह पहले समय में सम्यक्त्वमोहनीय का वेदन करता है तथा एक ऐसा भी मत है कि उपशमणि का उपशमसम्यक्त्व लेकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न होता है, उसके अनुसार उदयस्थान और अव क्तव्योदय क्षायिक सम्यग्दृष्टि की तरह घटित होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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