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________________ ३६ बंधविधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३ उपशांतमोगुणस्थान में एक सातावेदनीय का बंध करके जब कोई जीव वहां से गिर कर दसवें सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में आता है और वहां छह कर्मों का बंध करता है, तब छह प्रकृति रूप पहला भूयस्कारबंध है । जिस समय छह का बंध करे उस समय तो भूयस्कार बंध और शेष काल में जब तक वही का वही बंध हो तब तक अवस्थित बंध होता है । वही जीव दसवें सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान से भी च्युत होकर जब नीचे नौवें अनिवृत्तिबादरसंप रायगुणस्थान में माहनीय कर्म सहित सात प्रकृतियों को बांधता है, तब पहले समय में दूसरा भूयस्कारबंध और शेष काल में जब तक उतना ही बंध करे, तब तक अवस्थितबंध होता है । यह दूसरा भूयस्कारबंध है । वही जीव सात कर्मों को बांध कर प्रमत्तसंयत आदि गुणस्थानों में - आयुकर्म सहित आठ कर्मों को बांधे तब पहले समय में तीसरा भूयस्कारबंध और शेष काल में अवस्थितबंध होता है । यह तीसरा भूयस्कारबंध है । इस प्रकार एक से छह, छह से सात और सात से आठ का बंध होने के कारण भूयस्कारबंध तीन होते हैं । इस प्रकार से तीन भूयस्कारबंध जानना चाहिए अब अल्पतरबंध का निर्देश करते हैं भूयस्कारबंध की तरह अल्पतरबंध भी तीन होते हैं । वे इस प्रकार हैं- १ आठ कर्मप्रकृतियों को बांध कर सात का बंध, २ सात को बांधकर छह का बंध और ३ छह को बांधकर एक का बंध होना । आठ कर्मप्रकृतियों को बांधकर सात कर्मप्रकृतियों को बांधते समय पहला अल्पत रबंध और शेष काल में अवस्थितबंध होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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