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पंचसंग्रह
४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायचतुष्कवध को मिलाने पर भी पन्द्रह हेतु होते हैं। छह काय के चतुष्कसंयोग में पन्द्रह भंग होते हैं । उन पन्द्रह भगों को कायवधस्थान में रखकर पूर्वोक्त क्रम से गुणाकार करने पर (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भंग होते हैं।
इस प्रकार पन्द्रह बंधहेत के चार प्रकार हैं। उनके कुल भंग (१,५२०+१.१२०+६,१२०+२२,८०० = ४२,५६०) बयालीस हजार पांच सौ साठ होते हैं।
पन्द्रह बन्धहेतुओं के भंगों का कथन करने के पश्चात् अब सोलह बंधहेतुओं के भंगों को बतलाते हैं
१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में भय और छहकाय का वध मिलाने पर सोलह हेतु होते हैं । उनके (१,५२०) पन्द्रह सौ बीस भंग होते हैं ।
२. अथवा जुगुप्सा और छहकाय का वध मिलाने से भी सोलह हेतु होते हैं और उनके भी पूर्ववत् (१,५२०) पन्द्रह सौ बीस भंग होते हैं।
३. अथवा भय, जुगुप्सा और कायपंचकवध को मिलाने पर सोलह हेतु होते हैं। छह काय के पंचसंयोगी छह भंग होते हैं। जिनको कायबध के स्थान पर स्थापित कर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (६,१२०) इक्यानवे सौ बीस भंग होते हैं।
इस प्रकार सोलह बंधहेतु तीन प्रकार से होते है और उनके कुल भगों का योग (१,५२० + १,५२० +६,१२० = १,२१६०) बारह हजार एक सौ साठ है।
अब सत्रह बंधहैतुओं के भगों का निर्देश करते हैं
पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में भय, जुगुप्सा और छह काय का वध मिलाने पर सत्रह बंधहेतु होते हैं। उनका पूर्वोक्त क्रम से गुणा करने पर (१,५२०) पन्द्रह सौ बीस भंग होते हैं।
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