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बंधहेतु प्ररूपणा-अधिकार : गाथा ६
भय, जुगुप्सा का, चारणा-बदलना, पुण-पुनः, विमझसु-मध्यम विकल्पों में।
गाथार्थ-जहाँ तक बादरसपराय (कषाय) हैं, वहाँ तक अर्थात् नौवें बादरसंपरायगुणस्थान तक अनुक्रम से स्थापित अंकों का गुणाकार करने से अनेक जीवाश्रित होने वाले बंधहेतुओं के विकल्प होते हैं । मध्यम विकल्पों में अनन्तानुबंधी, भय और जुगुप्सा
की चारणा करना चाहिये। विशेषार्थ-गाथा में मिथ्यात्व गुणस्थान के जघन्य से लेकर उत्कृष्ट बन्धहेतुओं तक के भंग प्राप्त करने का नियम बताया है कि अनिवत्तिवादरसंपरायगुणस्थानपर्यन्त पूर्वोक्त प्रकार से स्थापित अंकों का परस्पर गुणा करने पर एक समय में अनेक जीवों की अपेक्षा बन्धहेतुओं के विकल्प होते हैं। ___ इस नियम के अनुसार अब मिथ्यादष्टिगुणस्थान में बनने वाले भंगों की संख्या बतलाते हैं कि एक जीव के एक समय में बताये गये दस बंधहेतुओं के अनेक जीवापेक्षा छत्तीस हजार भंग होते हैं । जो इस प्रकार समझना चाहिये__ अवान्तर भेदों की अपेक्षा मिथ्यात्व के पांच प्रकार हैं। ये पांचों भेद एक-एक कायघात में संभव हैं। जैसे कि कोई एक आभिग्रहिक मिथ्यादष्टि पथ्वीकाय का वध करता है तो कोई अपकाय का वध करता है। इसी प्रकार कोई तेज, कोई वायु, कोई वनस्पति और कोई त्रस काय का वध करता है । जिससे आभिग्रहिक मिथ्यादृष्टि काय की हिंसा के भेद से छह प्रकार का होता है। इसी प्रकार अन्य मिथ्यात्व के प्रकारों के लिये भी समझना चाहिए। जिससे पांच मिथ्यात्वों की छह कायों की हिंसा के साथ गुणा करने पर (६४५=३०) तीस भेद हुए।
उपयुक्त सभी तीस भेद एक-एक इन्द्रिय के असंयम में होते हैं । जैसे कि उक्त तीसों भेदों वाला कोई स्पर्शनेन्द्रिय की अविरति वाला होता है, दूसरा रसनेन्द्रिय की अविरति वाला होता है । इस प्रकार तीसरा, चौथा, पांचवां तीस-तीस भेद वाला जीव क्रमशः घ्राण, चक्षु और श्रोत्र
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