SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. . पंचसंग्रह इसलिये जब उनका उदय नहीं है तब जघन्यपद में पूर्वोक्त दस बंधहेतु होते हैं। ___इस प्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान में जघन्यपदभावी दस बंधहेतुओं को समझना चाहिए। अब मिथ्यात्व आदि भेदों का विकल्प से परिवर्तन करने पर जो अनेक भंग सम्भव हैं, उनके जानने का उपाय बतलाते हैं। मिथ्यात्व गुणस्थानवौं बंध हेतुओं के भंग इच्चे समेगगहणे तस्संखा भंगया उ कायाणं । जुयलस्स जुयं चउरो सया ठवेज्जा कसायाण ॥८॥ शब्दार्थ-इच्चेसि-इनमें से, एगगहणे - एक का ग्रहण करके, तस्संखा-उनकी संख्या, भंगया - भंग, उ--और, कायाण-काय के भेदों की, जुयलस्स-युगल के, जुयं -दो, चउरो-चार, सया~-सदा, ठवेज्जास्थापित करना चाहिए, कसायाण-कषायों के । गाथार्थ-भंगों की संख्या प्राप्त करने के लिए मिथ्यात्व के एक-एक भेद को ग्रहण करके उनके भेदों की संख्या, काय के भेदों - की संख्या, युगल के स्थान पर दो और कषाय के स्थान पर चार की संख्या स्थापित करना चाहिए-रखना चाहिए। विशेषार्थ-गाथा में मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती अनेक जीवों के आश्रय से एक समय में होने वाले बन्धहेतुओं की संख्या के भंगों को प्राप्त करने का उपाय बतलाया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-~ पूर्व की गाथा में यह बताया है कि पांच मिथ्यात्व में से एक मिथ्यात्व, छह काय में से किसी एक काय का घात, पांच इन्द्रियों में से किसी एक इन्द्रिय का असंयम, युगल द्विक में से कोई एक युगल, वेदत्रिक में से कोई एक वेद, क्रोधादि चार कषायों में से कोई एक क्रोधादि कषाय और दस योगों में से किसी एक योग का ग्रहण करने से मिथ्यात्व गुणस्थान में एक जीव के आश्रय से एक समय में जघन्य से दस बंधहेतु होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy