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________________ बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७ २१ विशेषार्थ-मिथ्यात्वगुणस्थान में एक समय में एक साथ जघन्यतः जितने बंधहेतु होते हैं, उनको गाथा में बताया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है मिथ्यात्व के पांच भेदों में से कोई एक मिथ्यात्व, छह काय के जीवों में से एक, दो आदि काय की हिंसा के भेद से काय की हिंसा के छह भेद होते हैं । यथा-छह काय में से जब बुद्धिपूर्वक एक काय की हिंसा करे तब एक काय का घातक, किन्हीं दो काय की हिंसा करे तब दो काय का घातक, इसी प्रकार से तीन, चार, पांच की हिंसा करे तब अनुक्रम से तीन, चार और पांच काय का घातक और छहों काय की एक साथ हिंसा करे तो षटकाय का घातक कहलाता है। अतः इन छह कायघात भेदों में से अन्यतर एक कायघात भेद तथा श्रोत्रादि पांच इन्द्रियों में से किसी एक इन्द्रिय का असंयम, और हास्य-रति एवं शोक-अरति, इन दोनों युगलों में से किसी एक युगल का उदय, वेदत्रिक में से अन्यतर किसी एक वेद का उदय, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन तीन कषायों में से कोई भी क्रोधादि तीन कषायों का उदय । क्योंकि कषायों में क्रोध, मान, माया और लोभ का एक साथ उदय नहीं होता है परन्तु अनुक्रम से उदय में आती हैं। इसलिये जब क्रोध का उदय हो तब मान, माया या लोभ का उदय नहीं होता है । मान का उदय होने पर क्रोध, माया और लोभ का उदय नहीं होता है । इसी प्रकार माया और लोभ के लिए भी समझना चाहिये । परन्तु जव अप्रत्याख्यानावरणादि क्रोध का उदय हो तब प्रत्याख्यानावरणादि क्रोध का भी उदय होता है। इसी तरह मान, माया, लोभ के लिए भी समझना चाहिए। ऐसा नियम है कि ऊपर के क्रोधादि १ मन का असंयम पृथक् होने पर भी इन्द्रियों के असंयम की तरह अलग नहीं बताने का कारण यह है कि मन के असंयम से ही इन्द्रिय असंयम होता है । अतः इन्द्रियों के असंयम से मन के असंयम को अलग न गिनकर इन्द्रिय असंयम के अन्तर्गत ग्रहण कर लिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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