________________
बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट
१६५
(ख) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+४+२+१+२+२+१=१३ । उक्त दोनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६४१४४४३४२x२x६=२५६२ भंग होते हैं। (ख) ६४५४४४३४२x६-६४८० भंग होते हैं ।
इन दोनों विकल्पों के भंगों का कुल जोड़ (२५६२+६४८०-६०७२) नौ हजार बहत्तर होता है ।
अब चौदह बंधप्रत्यय और उनके भंग बतलाते हैं।
इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भय गुगल और योग एक, ये चौदह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+५+२+१+२+२+१=१४ । इनके भंग इस प्रकार हैं-६४१४४४३४२x६=१२६६ ।
देशविरतगुणस्थान के आठ से चौदह तक के बंधप्रत्ययों के भंग इस प्रकार हैं
१. आठ बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ६४८० होते हैं। २. नौ बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग २५६२० होते हैं । ३. दस बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ४५३६० होते हैं। ४. ग्यारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ४५३६० होते हैं । ५. बारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग २७२१६ होते हैं । ६. तेरह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ६०७२ होते हैं । ७. चौदह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग १२६६ होते हैं ।
इन सर्व भंगों का जोड़ (१६०७०४) एक लाख साठ हजार सात सौ चार है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org