SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट सोलह बंधप्रत्यय के दो विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये सोलह बंधप्रत्यय होते हैं । इनके अंकों का प्रारूप इस प्रकार है १+६+४+१+२+१+१=१६ । ( ख ) इन्द्रिय एक काय पांच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये सोलह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंक - संदृष्टि इस प्रकार है १+५+४+१+२+२+१=१६। इन दोनों विकल्पों के भंग इस प्रकार जानना चाहिये (क) ६ × १ × ४×३×२ ×२ × १२ = ३४५६ भंग होते हैं । ६×१× ४×२ ×२×२× १ = १६२ भंग होते हैं । (ख) ६×६x४X३X२x१२ = १०३६८ भंग होते हैं । ६×६× ४×२×२ × १ = ५७६ भंग होते हैं । इन विकल्पों के भंगों का कुल योग (३४५६ + १६२+१०३६८+५७६ - १४५६२) चौदह हजार पांच सौ बानव है । अब सत्रह बंधहेतु बतलाते हैं। इनमें कोई विकल्प नहीं है । सत्रह बंधहेतु इस प्रकार हैं इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये सत्रह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+६+४+१+२+२+१=१७ । १४६ इसके भंग इस प्रकार जानना चाहिये ६ × १ × ४ × ३ × २x१२ = १७२८ भंग होते हैं । ६×१×४×२×२x१ = ६६ भंग होते हैं । इनका कुल योग (१७२८+६६= १८२४ ) होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only अठारह सौ चौबीस www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy