SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मग्रन्थभाग- १ अस्थिरषट्क- १. अस्थिरनाम, २ . अशुभनाम, ३. दुर्भगनाम, ४. दुःस्वरनाम, ५. अनादेयनाम और ६. अयश: कीर्त्तिनाम । ४४ स्थावर - चतुष्क— १. स्थावरनाम, २. सूक्ष्मनाम, ३. अपर्याप्तनाम और ४. साधारणनाम। सुभग- त्रिक- १. सुभगनाम, २. सुस्वरनाम और ३. आदेयनाम। गाथा में आदि शब्द है इसलिये दुर्भग-त्रिक का भी संग्रह कर लेना चाहिये । दुर्भग- त्रिक- १. दुर्भग, २. दुःस्वर और ३. अनादेय । वण्णचउ अगुरुलहुचउ तसाइदुतिचउरछक्कमिच्चाई | इय अन्नावि विभासा, तयाइ संखाहि पयडीहिं । । २९ ।। (वण्णचउ) वर्णचतुष्क, (अगुरुलहुचउ) अगुरुलघुचतुष्क, (तसाइ दुति चउर छक्कमिच्चाई) त्रस - द्विक, त्रस - त्रिक, त्रस - चतुष्क, त्रस - षट्क इत्यादि (इय) इस प्रकार (अन्नावि विभासा) अन्य विभाषाएँ भी समझनी चाहिये, ( तयाइ संखाहि पयडीहिं) तदादिसंख्यकप्रकृतियों के द्वारा || २९ ॥ भावार्थ- पूर्वोक्त गाथा में कुछ सङ्केत दिखलाये गये हैं, उसी प्रकार इस गाथा के द्वारा भी कुछ दिखलाए जाते हैं— वर्णचतुष्क- १. वर्णनाम, २. गन्धनाम, ३. रसनाम और ४. स्पर्शनाम – ये चार प्रकृतियाँ वर्णचतुष्क इस संकेत से ली जाती हैं। इस प्रकार आगे भी समझना चाहिये । अगुरुलघु- चतुष्क – १. अगुरुलघुनाम, २. उपघातनाम, ३ पराघातनाम और ४. उच्छ्वासनाम। त्रस - द्विक - १. त्रस - त्रिक- १. त्रस-चतुष्क - १ ४. प्रत्येकनाम। सनाम और २ बादरनाम । सनाम, २. बादरनाम और ३. पर्याप्तनाम | त्रसनाम, २. बादरनाम, ३. पर्याप्तनाम और त्रस - षट्क- १. त्रसनाम, प्रत्येकनाम, ५. स्थिरनाम और ६. Jain Education International २. बादरनाम, ३. पर्याप्तनाम, ४. शुभनाम | इनसे अन्य भी संकेत हैं जैसे कि- स्त्यानर्द्धि- त्रिक- १. स्त्यानर्द्धि, २. निद्रा-निद्रा और ३ प्रचलाप्रचला । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy