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________________ गाथा- अङ्क प्राकृत ९, २०, २२, सम २३,३५, ,४८ ४० १ ३२ ५९ १९,२३ ३३ ५०,५१ समचउरंस समासओ सय सरल सरिस सरीर सव्व ७ ससमास १८ सव्वविरइ ५८ ३७ ४० ससल्ल सहिय साइ साइय सामन्न सामन्न सामाण साय ६ १० ३१ २० १३,५५ २७ साहारण २० सिंग ४१ सिणिद्ध ४० सिय ३४,५० सिर सिरि सीअ सीय १ ४१ ४२ १४ सुद्ध ४८ सुत्तहार २६ सुभ सुभ ४२,४३ २६,५० सुभग Jain Education International परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - १ हिन्दी तुल्य संस्कृत सम समचतुरस्र समासतः शत सरल सदृश शरीर सर्व ससमास सर्वविरति सशल्य सहित सादि सादिक सामान्य सामान्य समान सात साधारण शृङ्ग स्निग्ध सित शिरस श्री शीत शीत शुद्ध सूत्रधार शुभ शुभ सुभग समचतुरस्रसंस्थान पृ. ५६ संक्षेप से सौ निष्कपट समान शरीर नामकर्म पृ. ४८ सब समास सहित सर्वविरतिचारित्र माया आदि शल्यसहित २२९ युक्त सादि संस्थान नाम पृ. ५६ आदि सहित निराकार अवान्तर भेद रहित समान सातावेदनीय पृ. २४,७७ साधारण नाम पृ. ४२ सींग स्निग्धस्पर्शनाम पृ. ५८ सितवर्णनाम पृ. ५६ मस्तक लक्ष्मी शीतस्पर्शनाम कर्म पृ. ५८ शीतस्पर्शनाम कर्म पृ. ५९ शुद्ध बढ़ई शुभ नामकर्म पृ. ४२ सुन्दर अच्छा सुभग नाम कर्म पृ. ४२,६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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