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________________ १९० कर्मग्रन्थभाग-३ तेऊ नरयनवूणा, उज्जोयचउ नरयवार विणु सुक्का। विणु नरयबार पम्हा, अजिणहारा इमा मिच्छे।। २२।। तेजोनरकनवोना उद्योतचतुर्नरकद्वादश बिना शुक्लाः । बिना नरकद्वादश पद्मा अजिनाहारका इमा मिथ्यात्वे।। २२।। 'कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले, जो चौथे गुणस्थान में वर्तमान हैं उनको देवआयु का बन्ध नहीं माना जा सकता; क्योंकि श्री भगवती सूत्र, शतक ३० के पहले उद्देश में कृष्ण-नील-कापोत लेश्यावाले, जो सम्यक्त्वी हैं उनके आयु-बन्ध के सम्बन्ध में श्री गौतम स्वामी के प्रश्न पर भगवान महावीर ने कहा है कि-'कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले सम्यक्त्वी मनुष्य-आयु को ही बाँध सकते हैं, अन्य आयु को नहीं।' उसी उद्देश्य में श्री गौतम स्वामी के अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने यह भी कहा है कि–'कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले तिर्यञ्च तथा मनुष्य जो सम्यक्त्वी हैं वे किसी भी आयु को नहीं बांधते।' इस प्रश्नोत्तर का सारांश इतना ही है कि उक्त तीन लेश्यावाले सम्यक्त्वियों को मनुष्य-आयु का बन्ध होता है, अन्य आयुओं का नहीं, सो भी देवों तथा नारकों की अपेक्षा से। श्रीभगवती सूत्र के उक्त मतानुसार कृष्णा आदि तीन लेश्याओं का चतुर्थ गुणस्थान-सम्बन्धी बन्ध-स्वामित्व देव-आयु-रहित अर्थात् ७६ प्रकृतियों का माना जाना चाहिए, जो कर्मग्रन्थ में ७७ प्रकृतियों का माना गया है।' उक्त शंका (विरोध) का समाधान कहीं नहीं दिया गया है। टब्बाकारों ने बहुश्रुतगम्य कहकर उसे छोड़ दिया है। गोम्मटसार में तो इस शंका के लिये जगह ही नहीं है। क्योंकि उसे भगवती का पाठ मान्य करने का आग्रह नहीं है। पर भगवती को मानने वाले कर्मग्रन्थियों के लिये यह शंका उपेक्षणीय नहीं है। उक्त शंका के सम्बन्ध में जब तक किसी की ओर से दूसरा प्रामाणिक समाधान प्रकट न हो, यह समाधान मान लेने में कोई आपत्ति नहीं जान पड़ती कि कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले सम्यक्त्वियों के प्रकृति-बन्ध में देव आयु की गणना की गयी है वह कार्मग्रन्थिक मत के अनुसार, सैद्धान्तिक मत के अनुसार नहीं। ____ कर्मग्रन्थ और सिद्धान्त का किसी-किसी विषय में मत-भेद है, यह बात चौथे कर्मग्रन्थ की ४९वीं गाथा में उल्लिखित सैद्धान्तिक मत से निर्विवाद सिद्ध है। इसलिये इस कर्मग्रन्थ में भी उक्त देव-आयु का बन्ध होने न होने के सम्बन्ध में कर्मग्रन्थ और सिद्धान्त का मतभेद मान कर आपस के विरोध का परिहार कर लेना अनुचित नहीं। ऊपर जिस प्रश्नोत्तर का कथन किया गया है उसका आवश्यक मूल पाठ नीचे दिया जाता हैकण्हलेस्साणं भंते! जीवा किरियावादी किं णेरइयाउयं पकरेन्ति पुच्छा? गोयमा! णो णेरइयाउयं पकरेन्ति, णो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंन्ति, मणुस्साउयं पकरेन्ति, णो देवाउयं पकरेन्ति। अकिरिया अणाणिय वेणइयवादी य चत्तारिवि आउयं पकरेन्ति। एवं णील लेस्सावि काउलेस्वावि। कण्हेलस्साणं भन्ते! किरियावादी पंचिदियतिरिक्खजोणिया किं णेरइयाउयं पुच्छा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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