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________________ १८८ कर्मग्रन्थभाग-३ भावार्थ-अन्य सम्यक्त्वों की अपेक्षा औपशमिक सम्यक्त्व में विशेषता यह है कि इसमें वर्तमान जीव के अध्यवसाय ऐसे नहीं होते, जिनसे कि आयुबन्ध किया जा सके। अतएव इस सम्यक्त्व के योग्य ८ गुणस्थान, जो पिछली गाथा में कहे गये हैं उनमें से चौथे से सातवें तक ४ गुणस्थानों में जिनमें कि आयु-बन्ध का सम्भव है-आयु-बन्ध नहीं होता। चौथे गुणस्थान में उपशम सम्यक्त्वी को देव आयु, मनुष्य आयु दो का वर्जन इसलिये किया है कि उसमें उन दो आयुओं का ही बन्ध सम्भव है, अन्य आयुओं का बन्ध नहीं; क्योंकि चौथे गुणस्थान में वर्तमान देव तथा नारक, मनुष्य आयु को ही बांध सकते हैं और तिर्यश्च तथा मनुष्य, देव आयु को। उपशम सम्यक्त्वी के पाँचवें आदि गुणस्थानों के बन्ध में केवल देव आयु को छोड़ दिया है। इसका कारण यह है कि उन गुणस्थानों में केवल देव आयु का बन्ध सम्भव है; क्योंकि पाँचवें गणस्थान के अधिकारी तिर्यश्च तथा मनुष्य ही हैं और छठे सातवें गुणस्थान के अधिकारी मनुष्य ही हैं, जो केवल देव आयु का बन्ध कर सकते हैं।।२०।। 'दो गाथाओं में लेश्या का बन्धस्वामित्वा' ओहे अट्ठारसयं, आहारदुगूण-माइलेसतिगे। तं तित्थोणं मिच्छे, साणाइसु सव्वहिं ओहो।।२१।। ओघेऽष्टादशशतमाहारकद्विकोनमादिलेश्या त्रिके। तीर्थोनं मिथ्यात्वे सासादनादिषु सर्वत्रौधः।।२१।। उपशम सम्यक्त्व दो प्रकार का है—पहले प्रकार का ग्रन्थिभेदजन्य, जो पहले पहल अनादि मिथ्यात्वी को होता है। दूसरे प्रकार का उपशमश्रेणि में होने वाला, जो आठवें से ग्यारहवें तक ४ गुणस्थानों में पाया जा सकता है। पिछले प्रकार के सम्यक्त्वसम्बन्धी गुणस्थानों में तो आयु का बन्ध सर्वथा वर्जित है। रहे पहले प्रकार के सम्यक्त्व सम्बन्धी चौथे से सातवें तक ४ गुणस्थान तो उनमें भी औपोशमिक सम्यक्त्वी आयुबन्ध नहीं कर सकता। इसमें प्रमाण यह पाया जाता है'अणबंधोदयमाउगबंयं कालं च सासणो कुणई। उवसमसम्मदिट्ठी चउण्हमिक्कपि नो कुणई।।१।।' अर्थात्-अनन्तानुबन्धी कषाय का बन्ध, उसका उदय, आयु का बन्ध और मरणइन ४ कार्यों को सास्वादन सम्यग्दृष्टि कर सकता है, पर इनमें से एक भी कार्य को उपशम सम्यग्दृष्टि नहीं कर सकता। इस प्रमाण से यही सिद्ध होता है कि उपशम सम्यक्त्व के समय आयु-बन्ध-योग्य परिणाम नहीं होते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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