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________________ कर्मग्रन्थभाग-२ १२५ ही जाता है। उत्सुकता हुई कि स्थिरता या एकाग्रता का भंग हुआ। एकाग्रता के भंग को ही प्रमाद कहते हैं इसलिये, आहारकद्विक का उदय भी छठे गुणस्थान तक ही माना जाता है। यद्यपि आहारकशरीर बना लेने के बाद कोई मुनि विशुद्ध अध्यवसाय से फिर भी सातवें गुणस्थान को पा सकते हैं, तथापि ऐसा बहुत कम होता है इसलिये इसकी विवक्षा आचार्यों ने नहीं की है। इसी से सातवें गुणस्थान में आहारक-द्विक के उदय को गिना नहीं है।।१४-१७|| संमत्तंतिमसंघयण तियगच्छेओ बिसत्तरि अपुव्वे । हासाइछक्कअंतो छसट्ठि अनियट्टिवेयतिगं ।।१८।। सम्यक्त्वान्तिमसंहननत्रिककच्छेदो द्वासप्ततिरपूर्वे। हास्यादिषट्कान्तः षट्षष्टिरनिवृत्तौ वेदत्रिकम् ।।१८।। संजखणतिगं छच्छेओ सट्ठि सुहुमंसि तुरियलोभंतो । उवसंत गुणे गुणसट्ठि रिसहनाराय द्रुगअंतो ।।१९।। संज्वत्वनत्रिकं घट्छेदः षष्टि सूक्ष्मे तुरियलोभान्तः । उपशान्तगुण एकोनषष्टि ऋषभनाराचद्विकान्तः ।।१९।। -सम्यक्त्व मोहनीय और अन्त के तीन संहनन इन ४ कर्म-प्रकृतियों का उदय-विच्छेद सातवें गुणस्थान के अन्तिम समय में हो जाता है। इससे सातवें गुणस्थान की उदय योग्य ७६ कर्म-प्रकृतियों में से सम्यक्त्वमोहनीय आदि उक्त चार कर्म-प्रकृतियों को घटा देने पर, शेष ७२ कर्म-प्रकृतियों का उदय आठवें गुणस्थान में रहता है। हास्य, रति, अरति, भय, शोक और जुगुप्सा इन ६ कर्म-प्रकृतियों का उदय आठवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक होता है, आगे नहीं। इससे आठवें गणस्थान की उदय-योग्य ७२ कर्म-प्रकृतियों में से हास्यआदि ६ कर्म-प्रकृतियों के घटा देने से शेष ६६ कर्म-प्रकृतियों का ही उदय नौवें गुणस्थान में रह जाता है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, १८ संज्वलन क्रोध, संज्वलन-मान और संज्वलन माया इन ६ कर्म-प्रकृतियों का उदय, नौवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक ही होता है। इससे नौवें गुणस्थान की उदययोग्य ६६ कर्म-प्रकृतियों में से स्त्रीवेद आदि उक्त ६ कर्म-प्रकृतियों को छोड़कर शेष ६० कर्म-प्रकृतियों का उदय दसवें गुणस्थान में होता है। संज्वलन-लोभ का उदय-विच्छेद दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में होता है। इससे दसवें गुणस्थान में जिन ६० कर्म-प्रकृतियों का उदय होता है उनमें से एक संज्वलनलोभ के बिना शेष ५९ कर्म-प्रकृतियों का उदय ग्यारहवें गुणस्थान में हो सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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